अमेरिका के हमले का क्या असर, क्यों इस एक केंद्र को US ने छुआ भी नहीं?

अमेरिका और इस्राइल ने अब तक ईरान में कितना अंदर तक हमला किया है? उसके इन हमलों से किस तरह का खतरा पैदा हुआ है? बुशहर परमाणु केंद्र पर हमले की आशंका को लेकर क्या डर जताया जा रहा है और क्यों? इससे खाड़ी देशों में क्यों तनाव की स्थिति है?

इस्राइल और ईरान के बीच संघर्ष शुरू हुए अब 11 दिन हो चुके हैं। इस्राइल ने पहले ही दिन से ईरान के चार परमाणु ठिकानों को निशाना बनाने के बाद से बीते एक हफ्ते में अलग-अलग मौकों पर अरक से लेकर इस्फहान तक परमाणु केंद्रों पर एयरस्ट्राइक को अंजाम दिया है। अब अमेरिका की तरफ से ईरान के तीन परमाणु ठिकानों- फोर्डो, इस्फहान और नतांज को निशाना बनाए जाने से पूरी दुनिया की चिंता बढ़ गई है। फिलहाल इन परमाणु केंद्रों से विकिरण (रेडिएशन) फैलने की खबरें नहीं हैं। हालांकि, यूएन की एजेंसी- अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) हालात पर करीब से नजर रख रही है।

इस पूरे घटनाक्रम के बीच सबसे कड़ी चेतावनी हाल ही में रूस की तरफ से आई थी। रूस ने कहा था कि अगर ईरान के बुशहर परमाणु संयंत्र पर हमला होता है तो इससे शेर्नोबिल (Chernobyl) जैसी परमाणु आपदा पैदा हो सकती है। गौरतलब है कि 1986 में जब यूक्रेन सोवियत संघ के अंतर्गत था, तब वहां एक परमाणु रिएक्टर में विस्फोट हो गया था। इस घटना के बाद यूक्रेन का एक बड़ा इलाका तबाह हो गया था और कई वर्षों तक यहां रेडिएशन फैला रहा।

इन चेतावनियों के बीच इस्राइल और अमेरिका ने ईरान की परमाणु क्षमता को खत्म करने के लिए अभियान जारी रखे। नतांज, अरक और इस्फहान में परमाणु ठिकानों पर गुरुवार से लेकर रविवार तक जबरदस्त हमले हुए, लेकिन बुशहर पर किसी बड़े हमले की बात सामने नहीं आई है। इससे पहले गुरुवार को इस्राइल की तरफ से बुशहर परमाणु संयंत्र को भी निशाना बनाने का एलान हुआ था, हालांकि बाद में इस्राइली सेना (आईडीएफ) ने इस घोषणा को गलत बताया था।

ऐसे में यह जानना अहम है कि अमेरिका और इस्राइल ने अब तक ईरान में कितना अंदर तक हमला किया है? उसके इन हमलों से किस तरह का खतरा पैदा हुआ है? बुशहर परमाणु केंद्र पर हमले की आशंका को लेकर क्या डर जताया जा रहा है और क्यों? इससे खाड़ी देशों में क्यों तनाव की स्थिति है?

अमेरिका-इस्राइल ने अब तक ईरान में कितना अंदर जाकर हमला किया?
इस्राइल ने अब तक खुद जो जानकारी दी है, उसके मुताबिक उसने नतांज, इस्फहान, अरक और फोर्डो पर हमले किए हैं। इसके अलावा उसने तेहरान में मौजूद परमाणु कार्यों से जुड़े कुछ ठिकानों को भी निशाना बनाया है। हालांकि, इन हमलों के पीछे इस्राइल का तर्क है कि वह ईरान को परमाणु बम बनाने से रोकने के लिए यह कर रहा है। दूसरी तरफ ईरान अब तक इस बात से इनकार करता रहा है कि वह परमाणु बम बनाने की कोशिश कर रहा है।

अरक में इस्राइल ने जिस रिएक्टर को तबाह किया है, वह अभी निर्माण के चरण में था और इसका काम अभी शुरू नहीं हुआ था। इसके अलावा अरक में ही इस्राइल ने हेवी वॉटर बनाने वाले एक प्लांट को भी तबाह कर दिया। चूंकि यह दोनों ही केंद्र अभी शुरू नहीं हुए थे, इसलिए यहां परमाणु पदार्थ मौजूद नहीं थे। ऐसे में अरक पर हमलों से कोई रेडिएशन (विकिरण) नहीं हुआ। गौरतलब है कि हेवी वॉटर रिएक्टर के जरिए प्लूटोनियम बनाया जा सकता है, जो कि परमाणु पदार्थ है और संवर्धित यूरेनियम की तरह ही परमाणु बम बनाने के काम में आता है।

अमेरिका-इस्राइल के इन हमलों से कितना नुकसान, क्या खतरा?
इंग्लैंड की यूनिवर्सिटी ऑफ लिवरपूल में रेडिएशन प्रोटेक्शन साइंस और परमाणु ऊर्जा नीति के प्रोफेसर पीटर ब्रायंट के मुताबिक, वे इस्राइल की तरफ से किए गए अब तक के हमलों से चिंतित नहीं हैं। उन्होंने कहा कि अरक परमाणु केंद्र अभियानगत ही नहीं था। दूसरी तरफ नतांज परमाणु केंद्र जमीन के नीचे है और यहां से अब तक रेडिएशन का मामला सामने नहीं आया है। नतांज जैसे परमाणु केंद्रों को इस तरह के हमले रोकने के लिहाज से ही डिजाइन किया जाता है। उन्होंने कहा कि कम संवर्धन में यूरेनियम तभी खतरनाक होता है, जब यह किसी तरह से शरीर के अंदर पहुंच जाए। फिर चाहे हवा के जरिए या और किसी तरीके से।

दूसरी तरफ लंदन स्थित थिंक टैंक- RUSI की सीनियर रिसर्च फेलो दारया दोलजिकोवा के मुताबिक, जब यूरेनियम को परमाणु रिएक्टर में डाले जाने के लिए तैयार किया जा रहा हो, उस चरण में हमले से रसायनिक स्तर का जोखिम हो सकता है, न कि विकिरण के स्तर का, क्योंकि जब यूरेनियम हेक्साफ्लोराइड हवा में मौजूद नम कणों (वॉटर वेपर्स) से मिल जाते हैं तो यह खतरनाक केमिकल बना सकते हैं। हालांकि, यह खतरा मौसम पर भी निर्भर करेगा। कम हवा के दौरान खतरनाक केमिकल परमाणु केंद्र के आसपास ही बैठ सकता है। लेकिन ज्यादा तेज हवाओं में यह खतरनाक केमिकल दूरी तक जा सकता है और ज्यादा लोगों को प्रभावित कर सकता है। हालांकि, अगर परमाणु केंद्र जमीन के नीचे है तो यह खतरा कुछ हद तक कम होता है।

ब्रिटेन की लीस्टर यूनिवर्सिटी में नागरिक सुरक्षा इकाई के प्रमुख साइमन बेनेट के मुताबिक, अगर इस्राइल भूमिगत परमाणु केंद्रों को निशाना बनाता है तो पर्यावरण को कम खतरा है, क्योंकि परमाणु पदार्थ हजारों टन कॉन्क्रीट, मिट्टी और चट्टानों के बीच दफन है।

तो ईरान का बुशहर परमाणु केंद्र कैसे बन सकता है खतरा?
वैज्ञानिकों की चिंता सिर्फ ईरान के बुशहर परमाणु ठिकाने को लेकर है। इसकी वजह है बुशहर की लोकेशन। दरअसल, यहां ईरान का सबसे सक्रिय परमाणु रिएक्टर है और यह फारस की खाड़ी (पर्शियन गल्फ) के बिल्कुल मुहाने पर स्थित है। यूनिवर्सिटी ऑफ मैनचेस्टर के प्रोफेसर रिचर्ड वेकफोर्ड के मुताबिक, अगर परमाणु ऊर्जा संयंत्र काफी बड़े हों और इन जगहों पर परमाणु संवर्धन का कार्य होता हो तो यह बड़ी समस्या हो सकता है, क्योंकि ऐसे ठिकानों पर हमले से रेडियोएक्टिव पदार्थों के हवा और पानी के जरिए समुद्र में फैलने का खतरा है।

अंतरराष्ट्रीय थिंक टैंक कार्नेगी एंडाओमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस में परमाणु नीति कार्यक्रम के सह-निदेशक जेम्स एक्टन का कहना है कि बुशहर पर हमला तय तौर पर परमाणु तबाही ला सकता है। उन्होंने कहा कि यूरेनियम के परमाणु रिएक्टर में इस्तेमाल होने से पहले यह कम ही रेडियोएक्टिव होता है, लेकिन यूरेनियम हेक्साफ्लोराइड जहरीला होता है। हालांकि, यह ज्यादा समय और दूरी तक जहरीला नहीं रह सकता।

दूसरी तरफ लीस्टर यूनिवर्सिटी के बेनेट ने साफ किया कि इस्राइलियों की तरफ से बुशहर पर हमला बेवकूफी होगी, क्योंकि अगर वे रिएक्टर को तबाह करने में सफल हुए तो इसका मतलब यह होगा कि रेडियोएक्टिव पदार्थ पर्यावरण में मिल जाएंगे।

बुशहर पर हमले की आशंका को लेकर खाड़ी देशों में क्यों चिंता?
अगर इस्राइल की तरफ से ईरान के बुशहर परमाणु ठिकाने पर हमला किया जाता है तो इससे खाड़ी देशों- सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई), कुवैत, ओमान, कतर, इराक और बहरीन की चिंताएं सबसे ज्यादा बढ़ सकती हैं। इसकी वजह बुशहर का फारस की खाड़ी से सटा होना है। इस्राइल के हमले की स्थिति में रेडियोएक्टिव और जहरीला पदार्थ खाड़ी के पानी में मिल सकता है और इससे पानी को प्यूरिफाई कर इस पर निर्भर रहने वाले देश प्रभावित हो सकते हैं।
संयुक्त अरब अमीरात में पीने के पानी की कुल जितनी मौजूदगी है, उसमें से फारस की खाड़ी का प्यूरिफाई किया हुआ पानी 80 फीसदी हिस्सेदारी रखता है। दूसरी तरफ बहरीन पूरी तरह प्यूरिफाई किए हुए पानी पर ही निर्भर है, क्योंकि 2016 में बहरीन सरकार ने जमीन में मौजूद पानी को आपात स्थितियों में ही इस्तेमाल के लिए संरक्षित किया था। इसी तरह कतर भी फारस की खाड़ी से लिए गए प्यूरिफायड पानी पर ही निर्भर है। सऊदी अरब, जहां जमीन में भी पानी की ठीक-ठाक मौजूदगी दर्ज की जाती है, वहां फिलहाल प्यूरिफाई किए हुए पानी पर निर्भरता 50 फीसदी ही है।
सऊदी अरब, ओमान और संयुक्त अरब अमीरात दो समुद्रों से घिरे हैं। ऐसे में मुश्किल स्थितियों में यह देश अपने लिए प्यूरिफाई किए हुए पानी की व्यवस्था कर सकते हैं। हालांकि, कतर, बहरीन और कुवैत के पास यह सुविधा नहीं है। ऐसे में इस्राइल का ईरान के बुशहर परमाणु केंद्र पर हमला खाड़ी देशों के लिए घातक साबित होगा।