सच बोलना ही मेरा दुश्मन क्यों बनता है?

जब पहली बार कक्षा एक में स्कूल में दाखिला लिया और जब गुरूजनों ने शिक्षकों ने शब्दों की पहचान करवाई तो स्कूल की दीवारों पर लिखा था। हमेशा सत्य बोलो, झूठ बोलना पाप है, माता पिता का आदर करो, शिक्षकों का सम्मान करो, किसी का बुरा मत करो, भटके को राह दिखाओ। जो मैंने कक्षा एक में पढ़ा उसी सोच पर उसी शिक्षा पर चल रहा हूं यह कसूर तो या मेरे माता पिता का है या मेरे शिक्षकों का है क्योंकि पहला गुरू मां होती है, दूसरा गुरू पिता होता है तीसरा गुरू शिक्षक होता है और कक्षा एक से ही ऐसा संस्कार मिला कि झूठ बोलना पाप है हमेशा सत्य बोलो, बड़ों का सम्मान करो, किसी का बुरा मत करो, भटके को राह दिखाओ तो मैंने क्या गलती की, शिक्षा के मंदिर में मिले संस्कारों को जीवन में उतारा और आज तकरीबन 35 साल से राजनीति कर रहा हूं और इस ज्योतिकण अखबार का पिछले 35 साल से हूं अखबार में भी सच्चाई लिखता हूं बोलता भी सच हूं अन्याय के खिलाफ लड़ता हूं भटकों को राह दिखाता हूं बुरे को बुरा कहता हूं अन्याय करने वालों का विरोध करता हूं जिस कारण समाज के कुछ चुनिंदा लोग जो आज अपने आप को नगर का सेठ नगर के अंबानी, नगर के टाटा बिरला मानते हुए हर एक को कहते हैं मेरी जेब में है लेकिन कक्षा एक में मिले संस्कारों के कारण मैं उनकी गलत बात को कैसे बर्दास्त करता उनके झूठ को क्यों न बेनकाब करता उनकी गुंडागर्दी को समाज में क्यों न बेनकाब करता और जो मेरे शिक्षकों ने कक्षा एक में ही सच बोलने की शिक्षा दी और मेरी सोच व नींव को नीति व नियत को मजबूत किया मेरा कसूर इतना है मैं सच बोलता हूं और अन्याय के खिलाफ लड़ता हूं जो आज के धनाड्य लोगों को बर्दास्त नहीं जब वो खरीद नहीं सकते तो बदनामी शुरू करते हैं लेकिन मुझे कोई फर्कनहीं पड़ता मैं अपना कर्म कक्षा एक में मिले संस्कारों की तरह करूंगा और हरि ओम पंवार की कविता की इन लाइनों पर पहरा देता रहूंगा ‘‘हम वो कलम नहीं जो झुक जाती हों दरबारों में हम वाणी के राजदूत हैं सच पर मरने वाले हैं, डाकू को डाकू कहने की हिम्मत रखने वाले हैं’’। भले ही मेरा सच मेरा दुश्मन बने।