क्या दीपावली पर पटाखों की रोक उचित ? || वीरेश शांडिल्य की कलम से खरी-खरी

क्या दीपावली पर पटाखों की रोक उचित?

वीरेश शांडिल्य की कलम से खरी-खरी
संपादकीय: पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने और इस साल नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने 30 नवम्बर तक और दीपावली पर पटाखों पर रोक लगा दी और हरियाणा पंजाब सरकारों ने तुगलगी फरमान जारी कर दिया कि दीपावली पर 2 घंटे पटाखे बेचे जा सकते हैं और 2 घंटे बजाए जा सकते हैं। ऐसा ही टाइम का फरमान पिछल्ली बार सुप्रीम कोर्ट ने किया था लेकिन दीपावली पर कौन रूकता है 100 करोड़ हिंदुओं का त्यौहार है सनातन धर्म के प्रतीक सम्मान है दीपावली। यही नहीं दीपावली के दिन सिखों के छठे गुरू 52 राजाओं को लेकर रिहा हुए थे ऐसे में दीपावली का त्यौहार हिंदु सिखों के लिए एक अहम पर्व है। लेकिन हर बार प्रदूषण के नाम पर इस त्यौहार पर पाबंदी लगाकर अफरा तफरी मचा दी जाती है क्या देश की अदालतें, क्या देश की सरकारें, क्या देश का प्रशासन पटाखों को चलने से रोक सकता है। ऐसे फैसले देकर देश की सर्वाेच्च अदालतें, सरकारें व प्रशासन अपनी जिम्मेवारी से सिर्फ मुक्त होने का काम करता है। सरकार ने पॉलीथीन बैन किए थे क्या वह बैन हो गए? वो बैन तब होते जब पॉलीथीन बनाने वाली फैक्ट्रीयां पूरी तरह बंद होती उन पर अंकुश लगता। और ऐसी फैक्ट्रीयां चलाने वालों पर कानून सजा का प्रावधान होता लेकिन ऐसा कुछ नहीं आज भी सिर्फ पॉलीथीन बेचने वालों पर शिकंजा कसा जा रहा है। बनाने वाले तो आज भी करोड़ों कमा रहे हैं। और यही कुछ पटाखों को लेकर है यदि देश की सुप्रीम कोर्ट या नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल या केंद्र सरकार या राज्य सरकारें पटाखें ना बनाने पर कानून लेकर आएं और पटाखें बनाने वालों पर उम्र कैद का कानून हो गैर जमानती हो फिर देखो कौन पटाखे बनाता है। करोड़ों अरबों रुपए पटाखे बनाने वाली फैक्ट्रीयां कमाती हैं और मरता कौन है छोटा बड़ा दुकानदार जिसके पास पटाखे बेचने का लाईसैंस है उसके पटाखे प्रशासन जब्त कर लेता है या फिर पुलिस या प्रशासन के लोग पटाखे उठाने के नाम पर अपनी दीवाली पर चांदी कमा जाते हैं। आखिर कब तक ऐसे जनता का बेवकूफ बनाया जाता रहेगा। अगर सरकार ग्रीन ट्रिब्यूनल वाक्य ही देश के पर्यावरण को लेकर चिंतित है तो सबसे पहले पटाखे बनाने वालों को लेकर सख्त कानून आए पुरानी कहावत है बुरे को मत मारो बुरे की मां को मारो जहां से बुराई पैदा होती है। आम छोटे बड़े दुकानदारों को परेशान करने का कोई फायदा नहीं हर बार दीवाली पर अगर कोई पिसता है तो वह छोटा बड़ा दुकानदार है ये आंखों में धूल झोंकने वाला फार्मूला सरकार को बंद करना चाहिए। यदि वह वास्तव में देश को प्रदूषण मुक्त करना चाहती है।

 

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