संपादकीय
मुंह में राम-राम बगल में छुरी
वीरेश शांडिल्य की कलम से खरी-खरी
देश कोरोना जैसी भयंकर महामारी के दौर से गुजर रहा है शायद 100 वर्ष पहले ऐसा माहौल आया था कि लाखों लोग मौत के मुंह में चले गए थे अब 100 साल के बाद 2020 में हिंदुस्तान में कोरोना नाम का कहर आया जिसमें स्कूल, कॉलेज, मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे, मुवमैंट, अस्तपताल, होटल, मोटल, पिकनिक स्थल, धार्मिक स्थल सब बंद हो गए थे। सब लोग जेलों की तरह अपने घरों में कैद हो गए थे। और जिसको कोरोना हो गया वो परिवार के लिए, अपनी पत्नी, बेटी, बेटा, मां, बाप, भाई, बहन यहां तक इलाज करने वाले डॉक्टर के लिए अभिशाप बन गया और कोरोना से मौत होने के बाद संस्कार एक लावारिस लाश की तरह परिवार ने अपनी आंखों के आगे देखा। लेकिन क्या इस कोरोना महामारी ने लोगों को बदला? क्या लोगों की सोच में बदलाव आया? क्या जो लोगों का खून पानी हो गया था वो खून बना? क्या धोखा धड़ी, झूठ फरेब, निंदा चुगली बंद हुई? एक दूसरे को लड़ाने का खेल, एक दूसरे की पीठ के पीछे से जहर उगलने का खेल बंद हुआ? क्या साजिशें बंद हुई, क्या कोरोना महामारी से लोगों ने सबक लिया? भगवान से स्वयं धरती पर आकर कलयुग का नाश करने का प्रयास किया लोगों की सोच बदलने का प्रयास किया? क्या लोग बदले, क्या मृत पड़ी आत्मा लोगों की जागी? क्या मरी पड़ी इंसानियत जिंदा हुई? या कोरोना महामारी के बाद भी बस पैसा हाय पैसा वाली पॉलीसी है अगर हम अब भी ना सुधरे अगर हमारे अंदर अब भी बदलाव ना आया और खासकर ऐसे लोगों के लिए जिनके मुंह में राम राम है और बगल में छुरी। हाराम की कमाई या दो नम्बर की कमाई एकत्रित कर शाम को उसमें से कुछ राशि गुरुद्वारों व मंदिरों तथा मस्जिदों में दान कर दो क्या भगवान आपको अत्याचार करने का लाईसंस दे देते हैं।
हमें सोचना होगा, हमें चिंतन व मंथन करना होगा, हमें अपनी प्रवृति बदलनी होगी, हमें काम धंधों के अलावा प्रभु सिमरन भी करना होगा, पीरों फकीरों, गुरुओं की सेवा भी करनी होगी। अगर हम किसी के काम आ सके तो हमें निश्छल्ल होकर दूसरे की मदद करनी होगी ना कि समाज में पतिष्ठा ऊंची करने के लिए ऐसे काम करने चाहिए भगवान की लाठी बे आवाज होती है इसलिए बोलने से पहले तोलना चाहिए। अहंकार तो रावण का नहीं रहा जिसके 10 सिर थे। पैसे का अहंकार बड़े बड़ों का टूट जाता है। मरते मरते दूनिया के सबसे अमीर आदमी सिकंदर ने कहा था कि मेरे मरने के बाद मेरे दोनो हाथ कफन से बाहर निकाल देना। शरीर को तो 2 गज जमीन व 2 गज कफन चाहिए। मैं-मैं-मैं इस अहंकार में रहकर ज्यादा दिन व्यक्ति जी नहीं सकता। दान दिखावे का नहीं परदे का है इसलिए हमें कोरोना महामारी के बाद चिंतन करना चाहिए कि हम कैसे बदलें, अपनी आत्मा को कैसे पवित्र करें, कैसे लोगों के साथ इंसान बनकर पेश आएं और हाथ जोड़कर आंख बंद करके प्रभु से माफी मांगे कि प्रभु जाने अनजाने में कोई गलती हो गई हो तो माफ करना और कोरोना जैसी महामारी फिर कभी ना भेजना रोटी भले ही नमक के साथ खिला देना परंतु कभी अहंकार मत आने देना अगर ऐसी सोच बनती है तो ही प्रभु जिसे हम नीली छतरी वाला कहते हैं, जिसे हम नानक कहते हैं, जिसे हम बांसुरी वाला कहते हैं अनेकों अनेक नाम हैं भगवान के चाहे वो अल्ला है, राम है, रहीम है लेकिन सबका संदेश आपसी भाईचारे का है सबका संदेश एक दूसरे से प्यार करने का है ये नहीं कि 2 पैसे आ गए तो तुमने-हमने भगवान भी जेब में डाल लिया। बहुत पहले गीत लिखा गया ‘बस यही अपराध मैं हर बार करता हुं, आदमी हुं आदमी से प्यार करता हुं’ तभी प्रभु ने संदेश दिया नर सेवा नारायण सेवा।