धनौरा में पावन पर्व चातुर्मास की ओर से रविवार को जैन संत करुणा मूर्ति, शांति मूर्ति, सेवा शिरोमणि आलोक मुनि और श्रमण गौरव, वाणी भूषण, युवा कर्मठ संत अमन मुनि का मंगल प्रवेश हर्षोल्लास के साथ हुआ।
इस अवसर पर भव्य कलश यात्रा निकाली। यह शोभायात्रा पूरे गांव का भ्रमण करते हुए धनौरा स्थित एसएस जैन सभागार में पहुंची। जैन संत अमन मुनि ने कहा कि जैन धर्म में चातुर्मास का बड़ा महत्व है। इन चार महीनों में जैन संत एक ही स्थान पर रहकर साधना और पूजा पाठ करते हैं। साथ ही इस दौरान सूक्ष्म जीव ज्यादा पैदा होते हैं, जिससे मनुष्यों के ज्यादा चलने या उठने बैठने से जीवों की हत्या होती है। इसलिए जैन संत इन चार महीनों के लिए एक ही जगह ठहर जाते हैं।
जीवन जीने की कला का पर्व है चातुर्मास
जैन धर्म में चातुर्मास एक आध्यात्मिक पर्व है। यह किसी बाह्य क्रिया कांड का नाम नहीं, अपितु जीवन जीने की कला का पर्व है। जैन धर्म में चातुर्मास कोई औपचारिकता नहीं अपितु यह जीवन निर्माण का एक अवसर प्रदान करता है। चातुर्मास को वर्षावास भी कहते हैं। वर्षा ऋतु के कारण जलभराव से जंतुओं की उत्पत्ति अधिक हो जाती है। उनकी रक्षा के लिए तथा धर्म-साधना के लिए चातुर्मास करने का शास्त्रीय विधान है। जैन धर्म में यह परंपरा अत्यंत प्राचीन है।
जैन धर्म में चातुर्मास एक आध्यात्मिक पर्व है। यह किसी बाह्य क्रिया कांड का नाम नहीं, अपितु जीवन जीने की कला का पर्व है। जैन धर्म में चातुर्मास कोई औपचारिकता नहीं अपितु यह जीवन निर्माण का एक अवसर प्रदान करता है। चातुर्मास को वर्षावास भी कहते हैं। वर्षा ऋतु के कारण जलभराव से जंतुओं की उत्पत्ति अधिक हो जाती है। उनकी रक्षा के लिए तथा धर्म-साधना के लिए चातुर्मास करने का शास्त्रीय विधान है। जैन धर्म में यह परंपरा अत्यंत प्राचीन है।