संपादकीय : क्या पूर्व केंद्रीय मंत्री व अम्बाला शहर विधायक विनोद शर्मा को निगम चुनावों में उतरना चाहिए ?

क्या विनोद शर्मा को उतरना चाहिए निगम चुनावों में?

 
वीरेश शांडिल्य की कलम से खरी – खरी
संपादकीय : 2005 से 2014 तक अम्बाला शहर के कांग्रेस विधायक रहे और 2005 में कुछ समय के लिए हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के कैबिनेट में बिजली एवं पर्यावरण मंत्री रहे विनोद शर्मा का कद अतीत में इससे भी बड़ा रहा है। और विनोद शर्मा जहां पिकाडली ग्रुप के मालिक हैं वहीं उद्योग जगत में भी विनोद शर्मा का नाम फक्र से लिया जाता है और वहीं विनोद शर्मा चंडीगढ़ कांग्रेस के भी अध्यक्ष रहे और पंजाब में बनूड़ विधानसभा क्षेत्र के विधायक रहे और सबसे अहम बात यह है कि विनोद शर्मा भारत के पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव के कैबिनेट में मंत्री रहे हैं। ऐसे में विनोद शर्मा अपना राजनीति कद कम ना आंके और जो गलती उन्होंने कांग्रेस से बाहर आकर 2014 में की और आजाद चुनाव लड़ा। वो गलती विनोद शर्मा अम्बाला शहर निगम चुनावों  में उतरकर ना करें क्योंकि अभी भाजपा सरकार के चार साल पड़े हैं। और जो ग्रुप उनके पास 2014 में था आज वो मजबूत ग्रुप उनके पास नहीं है इसलिए विनोद शर्मा जो एक राजनीति के चाणक्य भी हैं सुने सबकी, करे मन की। बुजुर्गों की पुरानी कहावत है कि ‘बंद मुट्ठी लाख की, खुल गई तो खाक की’ इसलिए विनोद शर्मा नगर निगम चुनावों में उतरने से पहले चिंतन व मनन करे क्योंकि उनका राजनीतिक कद बहुत बड़ा है और निगम चुनाव बहुत छोटा है और जिस तरह की चर्चाएं चल रही है कि विनोद शर्मा की धर्मपत्नी शक्ति रानी शर्मा अम्बाला शहर से मेयर का चुनाव लड़ सकती है या विनोद शर्मा के दोनों पुत्रों में से किसी एक की धर्मपत्नी अम्बाला शहर से मेयर का चुनाव लड़ सकती है। इन चर्चाओं को विनोद शर्मा विराम दें और समय का इंतजार करें जो चीज उनके राजनीतिक कद को शौभा देती है उन्हें वही काम करना चाहिए।
जो गलती विनोद शर्मा ने 2014 में विधानसभा चुनाव न लड़ के की उसकी पहले ही भरपाई नहीं हो पा रही है। और ऐसे में यदि विनोद शर्मा ने नगर निगम चुनाव लड़ने की गलती की तो उनका राजनीतिक कद प्रदेश में ही नहीं देश में भी कम हो सकता है। इसलिए विनोद शर्मा को जल्दबाजी में फैसला नहीं लेना चाहिए और हर कदम फूंक फूंक कर रखना चाहिए। क्योंकि राजनीति में सबकुछ पैसे से हासिल नहीं किया जा सकता कई बार पैसे के अलावा हालात और समीकरण भी देखे जाते हैं। इसलिए विनोद शर्मा भावुक होकर निगम चुनाव में ना उतरे बल्कि समीकरण देखकर चुनावी मैदान में आएं कि आज चुनाव लड़कर वह नुक्सान में रहेंगे या फायदे में। इसी एक बात पर उन्हें चिंतन करना होगा और जो लोग उन्हें निगम चुनावों में उतरने की सलाह दे रहें हैं विनोद शर्मा को यह बात नहीं भूलनी चाहिए कि उनकी राजनीति का धु्रवीकरण विनोद शर्मा है। और विनोद शर्मा नगर निगम चुनावों में यदि कुछ सीटें जीत गए तो उनका कद बढ़ेगा नहीं इतना ही रहेगा लेकिन यदि निगम चुनाव में वह पिछड़ गए तो उनका राजनीति कद खत्म हो जाएगा और वह हरियाणा की राजनीति में हाशिया में जा सकते हैं इसलिए विनोद शर्मा जो भी करें यह सोचकर करें कि भले ही फायदा हो ना हो नुक्सान नहीं होना चाहिए।
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