धन कभी संस्कार से बड़ा नहीं हो सकता | वीरेश शांडिल्य की कलम से खरी-खरी

धन कभी संस्कार से बड़ा नहीं हो सकता

 

 

संपादकीय : आज लोग पैसा कमाने के लिए कहीं तक भी गिर सकते हैं किसी हद तक झूठ बोल सकते हैं। किसी हद तक झूठी कसम उठा सकते हैं किसी हद तक अपनी बात को मनवाने के लिए साजिश रच सकते हैं। किसी को भी पैसे देकर झूठे गवाह के तौर पर खड़ा कर लेते हैं क्योंकि ऐसे समाज में रहने वाले लोगों के लिए सिर्फ पैसा कैसे कमाया जाए यह जरूरी है। उन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं यह पैसा किसी की निंदा करके कमाया, किसी का बुरा करके कमाया, किसी को धोखा देकर कमाया, किसी को झूठ बोलकर कमाया ऐसा पैसे कमाने वाले लोगों के लिए संस्कार बड़े नहीं है, धन बड़ा है। ऐसे लोगों के लिए समाज में संस्कार बड़ा नहीं बल व कपट बड़ा है। ऐसे लोग अपना उल्लू सीधा करने के लिए और पैसा कमाने के लिए लक्ष्मण रेखा भी पार करने के लिए  तैयार बैठे हैं। कई वर्षों पहले धर्मेंद्र की लोहा फिल्म आई थी उसमें एक गीत था ‘इसा पीर ना मूसा पीर, सबसे बड़ा है पैसा पीर’ और पैसा निश्चित तौर पर आंखों के आगे लालच की पट्टी बांध देता है और उस लालच की पट्टी के बाद पैसा कमाने वाले को रिश्तों से बड़ा, भाईचारे से बड़ा पैसा नजर आता है। उनकी नजरों में माता पिता कोई चीज नहीं, भाई बहन कोई चीज नही, रिश्ता कुटुम्भ कोई चीज नहीं, यार मित्र कोई चीज नहीं ऐसा पैसा कमाने वालों को संस्कार नाम की चीज से कुछ लेना देना नहीं वह तो पैसा कमाने के लिए जिस माता पिता ने उन्हें जन्म दिया होता है उसका भी पागल बना देते हैं उसको भी कह देते हैं तुने हमारे लिए आज तक क्या किया जो कुछ बनाया हमने बनाया अर्थात जिस मां ने 9 महीने कोख में रखकर जन्म दिया, जिस बाप ने ऊंगली पकड़कर चलना सिखाया, शिक्षा दिक्षा दी उनके लिए मां बाप जीरो, पैसा प्रधान। आज समाज में ऐसे पैसे वाले लोग पैदा हो गए हैं जिनके दूध वाले दांत भी नहीं  टूटे वह लोग अपने पिता को लालच वंश बदनाम कर रहे हैं। ऐसे लोग अपनी हैसियत भूल रहे हैं, ऐसे लोग यह भूल रहे हैं कि पानी का बुलबुला ज्यादा देर तक जीवित नहीं रहता ऐसे लोगों को यह नहीं भूलना चाहिए कि पैसे से बड़े संस्कार हैं, पैसे से बड़े वचन है, पैसे से बड़े रिश्ते हैं, पैसे से बड़ी जुबान है, पैसे से बड़े स्वाभीमान हैं जो व्यक्ति पैसे के लालच में आकर आज उसके साथ कल मेरे साथ परसों तीसरे के साथ और चौथे दिन अपने मां बाप के साथ भी नहीं। ऐेसे लोगों को भगवान भी नहीं बक्शता। जो लोग रिश्ते बनाकर जो लोग परिवारिक सदस्य बनाकर, जो लोग मित्र बनाकर पीठ पर छुरा घोंपते हैं उन्हें भगवान भी माफ नहीं करता और जो लोग अपनों को अपने फायदे के लिए बीच भंवर में धोखा दे सकते हैं, आग में धकेल सकते हैं, खाई में धकेल सकते हैं, बर्बाद करने की सोच सकते हैं, यहां तक उन्हें मरवाने का भी प्रयास करने की पहल कर सकते हैं ऐसे लोग यह भूल जाते हैं भगवान की लाठी बे अवाज होती है। समाज में हमेशा धन से बड़ा संस्कार ही रहेगा। इसका सबसे बड़ा उदाहरण सुदामा कृष्ण की जोड़ी है। कृष्ण ने धनवान होकर भी सुदामा के पैर धोकर पीए थे। अपने थोड़े फायदे के लिए दूसरे को तबाह करने वालों व सोचने वालों की सोचने वालों की योनी मनुष्य के रूप में जानवर से भी बत्तर है। इसलिए आदमी नहीं इंसान बनो।
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