पूर्व केंद्रीय मंत्री पंडित विनोद शर्मा का निगम चुनाव लड़ने का फैंसला क्या उचित हैं !

पूर्व केंद्रीय मंत्री पंडित विनोद शर्मा का निगम चुनाव लड़ने का फैंसला क्या उचित हैं !

वीरेश शांडिल्य की कलम से खरी-खरी
सम्पादकीय : पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं अम्बाला शहर के दो बार विधायक और भूपेंद्र सिंह हुड्डा के मंत्री मंडल में बिजली एवं पर्यावरण मंत्री रहे विनोद शर्मा 2020 में अम्बाला शहर की राजनीति में फिर सक्रीय हो गए हैं। 2014 में विनोद शर्मा को अम्बाला शहर विधानसभा से कांग्रेस ने टिकट नहीं दिया था। उनकी जगह युवा चेहरा हिम्मत सिंह थे और कांग्रेस ने हिम्मत सिंह को मैदान में उतारा था और विनोद शर्मा ने अपनी पार्टी गठित करके चुनाव लड़ा था लेकिन विनोद शर्मा अम्बाला शहर से चुनाव हार गए थे। और 2019 में विनोद शर्मा ने चुनाव नहीं लड़ा। हालांकि अंत तक यही चर्चाएं थी कि विनोद शर्मा चुनाव लड़ेंगे लेकिन विनोद शर्मा मैदान में नहीं उतरे कारण आज भी ना उनके वर्करों को ना अन्य राजनीतिक दलों को समझ आया। और विनोद शर्मा के 90 प्रतिशत कार्यकर्त्ता भाजपा के साथ जुड़ गए और असीम गोयल चुनाव जीत गए। हालांकि असीम गोयल की अपनी मैनेजमैंट जबरदस्त थी उन्होंने 2014 की तरह चुनाव नहीं लड़ा। उन्होंने हर कदम फूंक फूंक कर रखा और असीम गोयल तकरीबन 9 हजार से अधिक वोटों से जीत गए। लेकिन अम्बाला शहर में निगम चुनाव में अचानक विनोद शर्मा की एंट्री ने सबको चौंका दिया। विनोद शर्मा ने गत दिनों अपने माडल टाऊन आवास पर कार्यकर्त्ताओं से बातचीत की। हालांकि उनके कई खासमखास कहे जाने वाले कुछ नेता जो अब कांग्रेस व भाजपा में हैं नजर नहीं आए। आने वाले समय में विनोद शर्मा के उन पुराने साथियों व समर्थकों का क्या फैसला होगा फिलहाल यह बात भविष्य के गर्भ में है। लेकिन एकाएक विनोद शर्मा की निगम चुनावों में एंट्री से जहां उनके समर्थक खुश हैं वहीं राजनीतिक पार्टियों में चर्चाओं का बाजार गर्म है। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि यदि विनोद शर्मा ने निगम चुनाव लड़वाना ही था तो वह स्वयं 2019 का विधानसभा का चुनाव क्यों नहीं लड़े? यदि विनोद शर्मा चुनाव लड़ते तो उनके पुराने साथी उनके साथ रहते अब बात बहुत आगे निकल चुकी है हर आदमी कहीं ना कहीं जुबान कर चुका है। अब वो समय निकल गया है जब कार्यकर्त्ता विनोद शर्मा की हां में हां मिलाते थे। विनोद शर्मा ने 2019 में खुद अपने पांव पर कुल्हाड़ा मारते हुए चुनाव नहीं लड़ा उसमें उनके कार्यकर्त्ताओं की गलती थी परिवार को संगठित परिवार का मुखिया रखता है। परिवार का लाणेदार रखता है, परिवार का मोरी रखता है जब विनोद शर्मा 2019 में विधानसभा चुनाव लड़ने से पीछे हट गए तो कार्यकर्त्ताओं का क्या कसूर था। आखिर कार्यकर्त्ताओं ने अपने आप को जिंदा रखने के लिए कहीं तो जुड़ना था। पुरानी कहावत है मरता क्या ना करता। लेकिन अब शहर में एक चर्चा है क्या विनोद शर्मा को निगम चुनाव लड़वाना चाहिए? अगर निगम चुनावों में उतारे उनके उम्मीदवारों को सफलता ना मिली तो विनोद शर्मा की राजनीति पर गहरे संकट के बादल छा सकते हैं। इसलिए विनोद शर्मा हर फैसला सोच समझ कर लें वह सुलझे हुए नेता हैं इस बात को ना भूलें मुठ्ठी बंद लाख की खुल गई तो खाक की।
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