अंबाला सिटी। नगर निगम में चंडीगढ़ से नियंत्रक महालेखा परीक्षक (कैग) की टीम ने दस्तक दी है। कैग की टीम नगर निगम में विभिन्न मामलों का ऑडिट कर रही है। जिनमें दो दिनों से 28 हजार स्ट्रीट लाइटों की फाइलों को खंगाला जा रहा है।
नगर निगम प्रशासन ने दिव्य योजना के तहत ढ़ाई साल पहले करीब 18 करोड़ की लागत से शहर के लिए स्ट्रीट लाइटों काे खरीदा था। मगर यह स्ट्रीट लाइटें आज तक लगाई नहीं जा सकीं। कुछ समय पहले ही इन स्ट्रीट लाइटों को लगाने के लिए 14.50 करोड़ रुपये का एक ठेकेदार को टेंडर दिया है।
जिस दिन से टेंडर की जानकारी सामने आई है उसी दिन से इस मामले में मामला तूल पकड़ने लगा है। अब कैग की जांच के बाद सामने आएगा कि स्ट्रीट लाइटों को लेकर किस प्रकार की गड़बड़ी की गई है। वहीं नगर निगम में इन स्ट्रीट लाइटों को एक कमरे में रखवाया गया है। इसके गेट को प्लास्टर से बंद कर दिया है।
दरअसल अंबाला में कई स्थानों पर स्ट्रीट लाइटों बदला जाना था। इसके बाद दिव्य योजना में इन लाइटों को करीब 18 करोड़ रुपये में खरीदा गया। इसमें 70 प्रतिशत सरकार को तो 30 प्रतिशत नगर निगम को भुगतान करना था। अब सीएजी की टीम भी देख रही है कि क्या वास्तव में इन लाइटों को खरीदने की जरूरत थी। अगर थी तो इन लाइटों को किस कंपनी से, किस रेट में और किस ट्रांसपोर्ट के जरिए लाया गया।
इसमें ट्रांसपोर्ट अहम है क्योंकि करोड़ों रुपये की लाइटें लाने में जीएसटी के ई-वे बिल की जरूरत भी होती है। क्या ट्रांसपोर्ट का ई-वे बिल जेनरेट हुआ था। यह सभी प्रश्न इसलिए भी उठ रहे हैं क्योंकि लाइटों का पूरा भुगतान भी हो चुका है। इसके साथ ही नगर निगम में किस अधिकारी ने लाइटों की गुणवत्ता को सुनिश्चित किया, क्योंकि यह कार्य इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग ब्रांच का होता है
और उसी में विशेषज्ञ अधिकारी को होना चाहिए। इसके साथ ही एक करोड़ रुपये से अधिक की खरीददारी करने पर डायरेक्टर जनरल सप्लाइज एंड डिस्पोजल से एनओसी लेनी होती है। क्या वह नगर निगम के अधिकारियों ने एनओसी ली थी या नहीं इस पर सवाल उठ रहे हैं।
विजिलेंस जांच के आदेश
दिशा कमेटी की बैठक में सह अध्यक्ष राज्य सभा सांसद कार्तिकेय शर्मा ने मामले में भ्रष्टाचार की संभावना जताते हुए विजिलेंस जांच की संस्तुति तक कर दी है। उन्होंने बैठक में बताया था कि ढ़ाई साल से स्ट्रीट लाइटों को बंद कमरे में रखना अपने आप में ही लापरवाही को दर्शाता है। इस पर निगम के अधिकारी कोई स्पष्ट जवाब नहीं दे सके थे। अब इस मामले की जांच के लिए प्रशासनिक प्रक्रिया को किया जा रहा है।
ढ़ाई करोड़ का काम साढ़े 14 करोड़ में दिया
इन 28 हजार स्ट्रीट लाइटों को लगाने के लिए हाल ही में साढ़े 14 करोड़ रुपये की एक कंपनी को ठेका दिया है। जबकि इससे पहले चार हजार स्ट्रीट लाइटें बाहर से मंगाकर लगाई गईं थी। जिनमें करीब 40 लाख रुपये का ठेका नगर निगम ने दो एजेंसियों को दिया था। दोनों ने इसी धनराशि पर लाइटों को लगा दिया। अब अगर 28 हजार स्ट्रीट लाइटों के लिए पोल और दूसरी जरूरी चीजों को जोड़ भी लें तब भी खर्चा ढ़ाई तीन करोड़ रुपये से अधिक नहीं जाता है। ऐसे में साढ़े 14 करोड़ रुपये के ठेके पर भी सवाल उठ रहे हैं। इस पर नगर निगम में कोई बात करने को तैयार तक नही है। इस मामले में बात करने के लिए नगर निगम के कमिश्नर से फोन पर संपर्क किया गया मगर उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। वहीं संयुक्त आयुक्त अदिति ने बताया कि ऑडिट की उन्हें जानकारी नहीं है। यह मामला उनसे जुड़ा नहीं है।
हमारे कार्यकाल से पहले यह 28 हजार स्ट्रीट लाइटें मंगाई गई थी। इसका जवाब मिलना चाहिए कि किसने स्ट्रीट लाइटें मंगाईं, क्यों मंगाईं, इन्हें अब तक क्यों नहीं लगाया गया, इनको लगाने का ठेका बार-बार छोटा बड़ा क्यों किया गया। इसके साथ ही बताया जा रहा है इन 28 हजार लाइटों में से चार हजार स्ट्रीट लाइटों को लगा भी दिया गया है। इसकी भी सही जानकारी नहीं मिल पा रही है।——- सैलजा सचदेवा, मेयर, नगर निगम
यह स्ट्रीट लाइटें मेरे समय में आईं थी। इस योजना में सरकार द्वारा 70 प्रतिशत तो नगर निगम को 30 प्रतिशत खर्चा देना था। इससे पहले निगम में लाइटों की सिर्फ ठीक की जा रहीं थी। मैंने बार-बार लाइट लगाने का कहा मगर मेरे कार्यकाल में यह लाइटें लग नहीं पाईं। अधिकारी कभी कहते थे टेंडर लगा रहे हैं कभी कहते थे जल्द लगा दिया जाएगा। यह लाइटें लगतीं तो शहर को बड़ी सौगात मिलती। -शक्तिरानी शर्मा, पूर्व मेयर व कालका से विधायक