जो एक बार गलती करे वो इंसान, दो बार गलती करे वो शैतान,जो बार-बार गलती करे वो पाकिस्तान,और हर गलती को जो माफ़ करे वो हिंदुस्तान
उपरोक्त लिखित गद्यांश भारत पाकिस्तान रिश्तों पर बिल्कुल सही बैठती है। 1947 के विभाजन के बाद से ही पाकिस्तान भारत के लिए सिरदर्द बना हुआ है। 1971 में भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ, जिसमें भारतीय सेना ने पाकिस्तान सेना के 93000 सैनिकों का आत्मसमर्पण कराकर ऐतिहासिक विजय हासिल की, इसके फलस्वरूप पाकिस्तान दो हिस्सों में बंट गया जिसमें एक पूर्वी पाकिस्तान (बंगलादेश) और पश्चिमी पाकिस्तान बना। तब से लेकर काफी समय तक पाकिस्तान भारत के साथ छद्म युद्ध करता रहा है। 90 के दशक में दोनों पड़ोसी देश परमाणु संपन्न हो गए जो दुनिया के लिए एक चिंता का विषय था भारत पाकिस्तान के रिश्ते को ठीक करने के लिए और शांति बनाए रखने के लिए भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी अपने 11 सदस्यों के समूह के साथ 21 फरवरी 1999 को लाहौर पाकिस्तान में दोनों देशों के जननायकों ने लाहौर करार पर हस्ताक्षर कर भारत-पाकिस्तान के मध्य व्यापारिक सांस्कृतिक और धार्मिक रिश्तों को दृढ़ करने की इच्छा व्यक्त की मार्च 1999 को पाकिस्तान सेना के जनरल परवेज मुशर्रफ़ और आईएसआई चीफ इकतार अहमद भट ने मिलकर इस समझौते को नकार कर भारतीय सीमा के कारगिल जिले में घुसपैठ कर ‘ऑपरेशन बद्र’ को आरंभ किया।
15 मई 1999 को भारतीय सेना ने कैप्टन सौरव कालिया के नेतृत्व में पांच पांच फौजियों की टुकड़ियां बनाई जिसकों घुसपैठियों की जांच एवं जिले की पेट्रोलिंग के लिए भेजा, परन्तु घुसपैठ करके बैठे दुश्मन ने अचानक पेट्रोलिंग पार्टी पर हमला कर दिया जिससे वह सभी शहीद हो गए। घुसपैठियों ने 19 मई 1999 को कारगिल जिले पर हमला किया,जिसका मुख्य निशाना भारतीय सेना का हथियार घर था, इस हमले के बाद भारतीय सेना को एक ही दिन ₹125 करोड़ का नुकसान हुआ। पाकिस्तान सेना ने कारगिल जिले में भारतीय सेना की 140 पोस्टों पर नाजायज कब्जा किया, और करीब 2500 जवान तैनात किए। भारतीय सेना ने 19 मई 1999 को ऑपरेशन विजय की शुरुआत की। 20 मई को भारतीय सेना की गोरखा रेजिमेंट, राजपूत रेजिमेंट और 18 ग्रेनेडियर्स को कारगिल जिले के द्रास सेक्टर भेजा गया। द्रास सेक्टर में तोलोलीन पॉइंट, पॉइंट 4590, पॉइंट 5140, पॉइन्ट 5410 नामक पहाड़ियों पर भारतीय तिरंगा लहराने के बाद कारगिल की शान कही जाने वाली टाइगर हिल चोटी पर चढ़ाई कर दी। कारगिल का ताज कही जाने वाली टाइगर हिल 18,000 फिट की उचाई पर है जहाँ भारतीय सेना ने कैप्टन विक्रम बत्रा के नेतृत्व में 22 मई को तीन विभिन्न स्थानों से धावा बोला। इस हमले से पाकिस्तान सेना को काफी क्षति पहुंची परन्तु कैप्टन विक्रम बत्रा वीरगति को प्राप्त हुए। टाइगर हिल पर भारतीय सेना का अंतिम प्रहार 3 जुलाई 1999 को शाम के 5:15 को जवानों ने बोफोर्स तोपों के साथ किया, इस घातक हमले से भयभीत होकर पाक सेना भारतीय जमीन को छोड़कर भाग गई।
भारतीय नौसेना के पूर्वी एवं पश्चिमी नेवल कमांडर्स ने 25 मई 1999 को ‘ऑपरेशन तलवार’की शुरुआत की, हमले का मुख्य उद्देश्य पाकिस्तान के उन तटों को खत्म करना था,जिससे वह व्यापार एवं तेल का आदान प्रदान करता था| युद्ध के समय पाकिस्तान के प्रधानमंत्री रहे नवाज शरीफ के अनुसार, भारतीय नौसेना के हमले के बाद पाकिस्तान के पास सिर्फ 6 दिन की सामग्री एवं गोलाबारूद ही बचा था। कारगिल युद्ध में भारतीय थलसेना की सहायता के लिए और ऊँचाई पर छुपकर बैठे पाकिस्तान को खत्म करने के लिए भारतीय वायुसेना ने 26 मई 1999 को सफेद सागर नामक ऑपरेशन चलाया। युद्ध को निर्णायक दिशा भारतीय वायुसेना के विमान मिराज-2000 ने दी, भारत ने यह विमान फ्रांस से खरीदा था। लेज़र गाइडेड मिसाइलों के सामने पाकिस्तान सेना टिक नहीं सकीं और भारतीय पोस्टों को छोड़कर भाग निकली, जिसके परिणामस्वरूप भारतीय थलसेना ने सम्पूर्ण कारगिल जिले को जीत लिया। भारतीय सेनाओं द्वारा कारगिल युद्ध का सम्पूर्ण विजय 26 जुलाई को घोषित की गई, तब से लेकर यह दिन कारगिल विजय दिवस के नाम से जाना जाता है।
मीडिया किसी भी राष्ट्र में सरकार और जनता के बीच एक अहम कड़ी होती है। इस तथ्य को साबित करते हुए भारतीय मीडिया ने कारगिल युद्ध की सभी गतिविधियां बेझिझक होकर राष्ट्र के सामने रखी जिससे सारा राष्ट्र एकजुट और एक मत से भारतीय सेनाओं के साथ खड़ा हो गया। युद्ध केवल दो सेनाओं के बीच होता है लेकिन इसका परिणाम समस्त देश और देशवासियों को भुगतना पड़ता है। कारगिल युद्ध के पश्चात पाकिस्तान का असली चेहरा और उनकी आतंकी गतिविधियों समस्त संसार के सामने आई, इसका फायदा भारत को हुआ उन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ में पाकिस्तान द्वारा भेजे गए कश्मीर मुददे के सभी प्रस्तावकों को खारिज कर दिया।
अंत में अपने लेख को विराम देते हुए मैं उन सभी शूरवीर योद्धाओं और उनके परिवार को नमन करते हुए अंतिम पंक्तियाँ पेश करता हूँ- हमारा तिरंगा इसलिए नहीं लहरा रहा क्योंकि हवा चल रही है, बल्कि वो शहीद हुए जवानों की आखिरी सांस से लहरा रहा है।
लेखक:
रजत भाटिया
M.Sc.( Physics)B.Ed.
(Physics Lecturer)