अम्बाला, (JYOTIKAN NEWS) गृह, शहरी स्थानीय निकाय एवं स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने कहा कि गीता सफलता की कूंजी है। जब हम स्कूल में पढ़ते थे, उस समय सभी विषयों की एक कूंजी होती थी। गीता जीवन की कूंजी है, यदि हम गीता को पढ़ लें और उसे मन से आत्मसात कर लें तो जीवन में हमें और पढऩे की ललक नहीं होगी। गीता में जिंदगी का सार है। गृहमंत्री आज रामबाग मैदान अम्बाला शहर में गीता जयंती समारोह में बतौर मुख्य अतिथि पहुंचे थे और उन्होंने यह अभिव्यक्ति अपने सम्बोधन में कही। इस मौके पर भाजपा जिला अध्यक्ष राजेश बतौरा व जजपा के शहरी अध्यक्ष हरपाल सिंह कम्बोज ने वशिष्ठ अतिथि के तौर पर शिरकत की। यहां पहुंचने पर अतिरिक्त उपायुक्त सचिन गुप्ता, सीईओ जिला परिषद जगदीप ढांडा व एसडीएम हितेष कुमार ने मुख्य अतिथि व वशिष्ठ अतिथि को पुष्प गुच्छ देकर उनका स्वागत किया। मंचीय कार्यक्रम का शुभारम्भ मुख्य अतिथि व वशिष्ठ अतिथि द्वारा श्रीमदभगवद गीता के समक्ष दीप प्रज्वलित कर किया गया।
गृहमंत्री अनिल विज ने जिला स्तरीय गीता जयंती महोत्सव की बधाई देते हुए कहा कि गीता महोत्सव आज पूरे भारत में मनाने का काम किया जा रहा है। इसी कड़ी में कुरूक्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय गीता जयंती महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है। हमने भी आज जिला स्तरीय गीता जयंती महोत्सव समारोह में दीप प्रज्वलन व गीता जी के समक्ष पुष्प अर्पित करके इस कार्यक्रम का शुभारम्भ किया है। वैसे तो हमारे अनेकों शास्त्र वेद एवं पुराण है लेकिन गीता जी को सफलता की कूंजी कहा जाता है। जिंदगी के किसी भी दोराहे पर अगर हमें यह समझ न आए कि हमें किस तरफ जाना है, क्या करना है और क्या नहीं करना है तो कहा गया है कि गीता जी खोलकर देखो, गीता जी में हर प्रश्न का उत्तर मिलता है। हमारा सारा ज्ञान एवं हमारे सारे शास्त्र संस्कृत में लिखे हुए हैं लेकिन हमारे साथ धोखा हुआ है कि संस्कृत को हमसे छीन लिया गया। इसलिए गीता को पढऩे और समझने की जरूरत है। हमने गीता का पाठ-पूजन तो आरम्भ कर लिया, अगर हमारे स्कूलों में हमसे संस्कृत का अधिकार न छीना होता तो आज के युग की एवं हिदुंस्तान की शक्ल और सुरत कुछ ओर ही होती। हम सब धर्म परायण के लोग हैं, हमको जीवन की सब मुश्किलात का ज्ञान होता है।
उन्होने अपने सम्बोधन के क्रम में आगे कहा कि शादी होती है, लावें फेरे होते हैं, पंडित जी संस्कृत में श्लोक पढ़ते हैं, दुल्हा-दुल्हन अग्नि के समक्ष सात फेेरे लेते हैं, शादी हो जाती है। पंडित जी ने श्लोकों में क्या कहा, दुल्हा-दुल्हन को नहीं पता होता, क्योंकि जो यह श्लोक बोले जाते है वह संस्कृत में होते हैं और उनका ज्ञान उन्हें नहीं होता। मैं दावे से यह कहता हूं कि जो परिवार आज दूर हो रहे हैं या टूट रहे हैं उसका एक कारण यह भी है। उन्होने कहा कि इतना ज्ञानवर्धन इन मंत्रो उच्चारण में होता है, यदि हमें इनका ज्ञान होता तो इससे हमारी गृहस्थी आसानी से चलती।
गृहमंत्री ने कुछ श्लोकों के माध्यम से गीता की महत्वता बारे भी प्रकाश डाला। गीता जी को पढ़ें तो पहले श्लोक में धृतराष्ट्र ने संजय को कहा है कि धर्मक्षेत्र कुरूक्षेत्र में मेरे और पांडवों के बच्चे मिलें तो क्या हुआ, उसका वर्णन है। पहले श्लोक में ही इतना ज्ञानवर्धक एवं गूडरहस्य है। गीता को लाल कपड़े में बांधकर व पूजा-अर्चना करने से लाभ नहीं मिलता। एक-एक श्लोक को पढ़े और उसके अर्थ को समझें तो हमें ज्ञान रूपी लाभ की प्राप्ति होती है। उन्होंने एक उदाहरण देते हुए कहा कि एक राजा के समक्ष कईं संतों ने आकर कहा कि उन्हें गीता का पूरा ज्ञान है। किसी ने कईं बार गीता पढऩे की बात कही, तो एक संत ने सौ बार गीता पढने की बात कही, तो महाराज ने कहा उत्तम बात है लेकिन ऐसा लगता है कि आपको गीता का ज्ञान नहीं है। उन्होंने एक बार फिर दरबार में आकर कहा कि मैंने 500 बार गीता पढ़ी तो भी महाराज ने कहा कि अभी भी ऐसा लगता है कि आपको गीता का ज्ञान नहीं है। उसके बाद संत नहीं आया और बाद में महाराज ने मंत्रियों से कहा कि देखो वह संत क्यों नहीं आया तो वे स्वयं साधु की कुटिया में गये तो देखा कि वह संत ध्यान लगाकर गीता को पढऩे में मग्न है, उसको नहीं पता कि महाराज उसके पास आए हैं तो उसने माना कि अब इस संत ने पूरी गीता पढ़ ली है क्योंकि उसने गीता को मन से आत्मसात किया है। उन्होंने संत के पैरों को छूककर उन्हें अपना गुरू बनाने की बात कही।
गृहमंत्री ने कहा कि गीता जी को जो पढ़ लेता है उसके अर्थ को समझ लेता है, तेरा, मेरा, अपना, पराया सब कुछ भूल जाता है। गीता में इतना गहरा सार है कि जीवन की हर समस्या का समाधान उसमें है। हम जानते तो हैं कि गीता में जिंदगी का सार है, पर हम उस पथ पर नहीं चलते हैं। आज आवश्यकता है कि धर्म और संस्कृति को जानने के लिए हम सबको संस्कृत को पढऩा चाहिए और सीखना चाहिए। हमें अपने बच्चों को स्कूल में संस्कृत विषय दिलवाना चाहिए और प्राईवेट टयूशन लेकर भी संस्कृत को सीखना चाहिए। स्कूलों में संस्कृत विषय को अनिवार्य करने के लिए सरकार प्रयास कर रही है। उन्होने कहा कि गीता अंधकार से ज्योति की ओर ले जाने का कार्य करती है। ज्ञान योग, सांख्य योग, कर्म योग, भक्ति योग करना है तो गीता को आत्मसात करके करें। गीता कभी नहीं कहती कि जंगलों मे जाना है, गीता को तो मन से आत्मसात करने की जरूरत है।
उन्होंने उपस्थित सभी लोगों को कहा कि हमें इस जिला स्तरीय समारोह को एक दिन तक ही सीमित न करके गीता का ज्ञान निरंतर प्राप्त करने के लिए गीता को मन से धारण करना है और यहां पर गीता से सम्बन्धित जो भी प्रति या किताबें है उसे वे अपने साथ लेकर जाएं और आज से ही गीता को पढऩा आरम्भ करें। अगले वर्ष जब यहां पर गीता जयंती समारोह होगा तो आप स्वयं ही बताना कि आपकी जिंदगी में क्या बदलाव आया है। इस मौके पर अतिरिक्त उपायुक्त सचिन गुप्ता, सीईओ जिला परिषद जगदीप ढांडा व एसडीएम हितेष कुमार ने मुख्य अतिथि व वशिष्ठ अतिथियों को स्मृति चिन्ह, श्रीमदभगवदगीता व शाल भेंट कर उनका अभिनंदन किया। मुख्य अतिथि के साथ-साथ वशिष्ठ अतिथियों ने यहां पर लगाई गई प्रदर्शनी का अवलोकन कर सराहना की। मंच संचालन की भमिका प्राध्यापिका ज्योति व रमा खन्ना ने सफलतापूर्वक की।
इस मौके पर अनुभव अग्रवाल, एडवोकेट नम्रता गौड, राम रतन गर्ग, प्रीतम गिल, सुदेश जैन मिडडा, संजय लाकड़ा, राज वालिया, ललित चौधरी, पूर्ण प्रकाश शर्मा, सुश्री शशी, मोनू चावला, डीआरओ राजबीर धीमान, डीडीपीओ रेणू जैन, डीआईपीआरओ धर्मेन्द्र कुमार, जिला शिक्षा अधिकारी सुरेश कुमार, सिविल सर्जन डा0 कुलदीप सिंह, डा0 सुखप्रीत, डा0 हितेष, जिला कार्यक्रम अधिकारी मनीषा गागट, रैडक्रास सोसायटी सचिव विजय लक्ष्मी, जिला बाल कल्याण अधिकारी शिवानी सूद, जिला समाज कल्याण अधिकारी विनोद कुमार, जिला बागवानी अधिकारी अजेश कुमार, जन स्वास्थ्य विभाग के कार्यकारी अभियंता कर्मवीर, शिक्षा विभाग से राजकुमार राणा सहित विभिन्न विभागों के अधिकारी मौजूद रहे।