डीजीपी मनोज यादव को वाई पूर्ण कुमार को बात करने के लिए बुलाना चाहिए !
वीरेश शांडिल्य की कलम से खरी-खरी
हरियाणा के डीजीपी मनोज यादव जो हरियाणा पुलिस परिवार के मुखिया हैं। हरियाणा प्रदेश कानून व्यवस्था के मुखिया हैं अगर किसी जिला में कोई अपराध होता है तो सीधे तौर पर डीजीपी उस जिला या रेंज के अधिकारियों को तुरंत कार्रवाई करने के आदेश देते हैं क्योंकि कहीं ना कहीं अच्छे व बुरे दोनों कार्यों का असर डीजीपी मनोज यादव की छवि पर पड़ता है। इन दिनों डीजीपी मनोज यादव व आईजी वाई पूर्ण कुमार का शहजादपुर मंदिर में माथा टेकने का विवाद मीडिया की सुर्खियां बना हुआ है और उन्हीं के अधीनस्थ अम्बाला के पूर्व आईजी वाई पूर्ण कुमार ने उनके खिलाफ एससी एसटी एक्ट में मुकद्दमा दर्ज करने को लेकर शिकायत दी है और दिन प्रतिदिन यह मामला तूल पकड़ रहा है। निश्चित तौर पर सरकार की बदनामी हो रही है और हरियाणा के डीजीपी इस बात को भी डिनाई नहीं कर सकते कि उनकी छवि भी आम जन मानस में, सरकार में व लोगों में खराब हो रही है। क्योंकि हरियाणा के डीजीपी पुलिस के मुखिया हैं जैसे परिवार में बुजुर्ग मुखिया होता है उसके आगे परिवार के लोग संगठित रहते हैं आपस में विवाद नहीं रखते एकता रखते हैं।
वैसे ही डीजीपी मनोज यादव भी अपने पुलिस परिवार के मुखिया हैं और अहम बात तो यह है कि वह देश में आईबी के एडिशनल डायरैक्टर रहे हैं जो महकमा सीधे तौर पर पीएम से अटैच होता है पूरे देश की सरकारों पर नजर रखी जाती है। यहां तक इंटरनैशनल मुद्दों व बार्डरों की चौकसी का काम भी आईबी का है। ऐसे में मनोज यादव के बारे में यह कहना कि उनको कोई भड़का रहा है या गुमराह कर रहा है यह गलत होगा। मनोज यादव की पुलिस सेवा में यह एक अग्नि परीक्षा है जो परीक्षा उन्हें खुद देनी है और यदि वे चाहे तो इस परीक्षा में ना केवल उतीर्ण बल्कि वह मैरीट में आ सकते हैं। परिवार के मुखिया को बहुत कुर्बानियां देनी पड़ती है तब जाकर परिवार एक रहता है। इसी सोच पर डीजीपी मनोज यादव को अपने आईजी वाई पूर्ण कुमार को अपने पास बुलाने की पहल करनी चाहिए। बड़े बड़े विवाद चाहे वो राष्टÑीय हों या अन्तराष्ट्रीय बातचीत (डायलॉग) से हल होते हैं।
अब समय है मनोज यादव की समझदारी का कि कैसे इस मसले को हल करते हैं क्योंकि कोई नहीं चाहेगा कि दोनों अधिकारियों का मामला सुलझे और बात खत्म हो। हर दूसरा आदमी चाहे वो ब्यूरोक्रेट्स है या नेता है वो मनोज यादव व वाई पूर्ण कुमार की इस लड़ाई की आग में घी गिराने का काम करेगा ताकि आग कम ना हो। दोनों ही आईपीएस अधिकारियों को आत्मचिंतन करना होगा। एक बहुत प्यारा शेयर है ‘तेरा घर भी शीशे का, मेरा घर भी शीशे का, तू भी सोच मैं भी सोचू’। मनोज यादव को पुलिस परिवार का मुखिया होते हुए इसकी स्वयं पहल करनी चाहिए। इसे प्रतिष्ठा का सवाल नहीं बनाना चाहिए दो अशिक्षित लोग लड़े समझ आता है क्योंकि वह किसी की सुनते नहीं। मनोज यादव व वाई पूर्ण कुमार दोनों आईपीएस हैं दोनों लोगों को जस्टिस देते हैं बड़ी बड़ी अनसुलझी गुत्थियां सुलझाते हैं इसलिए मनोज यादव को वाई पूर्ण कुमार की तकलीफ पर मलहम का काम करना चाहिए। कहीं ना कहीं वाई पूर्ण कुमार के मन को पीड़ा है उस पीड़ा को परिवार का मुखिया दूर कर अपनी मील पत्थर सोच का परिचय दे।