ना धन बड़ा, ना बल बड़ा, सबसे बड़ी इन्सानियत है
वीरेश शांडिल्य की कलम से खरी-खरी
सम्पादकीय : दुनिया में कुछ लोग धन के दम पर राज करना चाहते हैं, कुछ लोग बल के दम पर राज करना चाहते हैं लेकिन ऐसे लोग गलत फहमी के शिकार हैं। यहां तो बड़े बड़े तीस मारखां आए, सिकंदर जैसे पैसे वाले आए, हिटलर जैसे शासक आए लेकिन वह लम्बे समय नहीं टिक पाए। लम्बे समय तक वही टिक सकता है जो धन व बल के दम पर नहीं बल्कि इन्सानियत के दम पर समाज के साथ रहता है। इन्सान बनकर समाज को जोड़ता है। हमने कभी गुस्से में कभी किसी को कहा कि तेरी आदमियत मर गई जब भी कहा यह कहा कि तेरी इन्सानियत मर गई। आज भी देश में सबसे ताकतवर गृह मंत्री सरदार पटेल को याद किया जाता है क्योंकि उन्होंने ताकत का इस्तेमाल राष्टÑ के लिए किया और लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री होने के बाद भी आज भी बैंक के कर्जदार हैं ये उनकी इन्सानियत है। लाल बहादुर शास्त्री के अनेको किस्से आंखों से आंसू निकाल देते हैं और मदर टेरेसा को इन्सानियत के नाम से ही जाना जाता है। इसलिए जो लोग पैसे के दम पर बल के दम पर, बड़ी सिफारिशों के दम पर अपने से छोटे लोगों को पैरों के नीचे रोंदने की बाते करते हैं उन्हें सिकंदर व हिटलर का इतिहास पढ़ लेना चाहिए। इसलिए यदि कोई इस गलतफहमी का शिकार है कि पैसे से किसी की इन्सानियत खरीदी जा सकती है, पैसे से किसी का स्वाभीमान नहीं खरीदा जा सकता, पैसे से आदमी सबकुछ खरीद सकता है ये दो चीजें नहीं खरीद सकता, पैसे से आदमी सबकुछ खरीद सकता है लेकिन पैसे आदमी समाज में इज्जत नहीं खरीद सकता। धन बल पर आप अच्छे से अच्छे पकवान खरीद सकते हो भूख नहीं खरीद सकते, अच्छे से अच्छा बिस्तर खरीद सकते हो नींद नहीं खरीद सकते, अच्छे से अच्छा महल पा सकते हो लेकिन भगवान के आर्शीवाद के बिना उसमें बच्चों का सुख परिवार का सुख नहीं खरीद सकते। पैसा सिर्फ एक जरूरत है यदि हम पैसे के दम पर या बल के दम पर यह सोचते हैं कि हम कुछ भी जीत सकते हैं तो इतिहास में ऐसे योद्धा हुए जिन्होंने बड़े बड़े मुगलों के आगे हार नहीं मानी। सिखों के 9वें गुरू तेग बहादुर ने तो हिंदु धर्म की रक्षा के लिए अपना शीश कुर्बान कर दिया था। 10वें गुरु ने अन्याय और अत्याचार के खिलाफ अपना सरवंस कुर्बान कर दिया था क्योंकि उनका बल उनका धन समाज को समर्पित था, देश को समर्पित था, राष्टÑ को समर्पित था। इसलिए हमें इन्सानियत से प्यार करना चाहिए। धन की जरूरत एक सीमा तक है और बल का समाज में कोई स्थान नहीं है। अगर समाज में किसी चीज का स्थान है तो वह इन्सानियत का है जिसकी इन्सानियत मर गई वह इस धरती पर जानवर से भी बत्तर है।