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कोरोना के दो वैरिएंट्स निंबस (Nimbus) और स्ट्राटस (Stratus) को लेकर इन दिनों काफी चर्चा है।
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कुछ रिपोर्ट्स में दावा किया जा रहा है कि इन वैरिएंट्स की संक्रामकता दर ओमिक्रॉन के पिछले वैरिएंट्स की तुलना में ढाई गुना तक अधिक हो सकती है।
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क्या ये नए वैरिएंट्स हैं, जिसको लेकर फिर से सभी लोगों को सावधान हो जाना चाहिए?
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पिछले एक महीने से अधिक समय से भारत सहित दुनिया के कई देशों में कोरोनावायरस का प्रकोप देखा जा रहा है। मई में हांगकांग और सिंगापुर से शुरू हुई ये नई लहर देखते ही देखते भारत में भी तेजी से बढ़ने लगी। तीन हफ्तों में ही देश में एक्टिव केस बढ़कर 7400 से अधिक हो गए थे, हालांकि बीते दो-तीन दिनों से संक्रमण के मामलों में गिरावट देखी जा रही है।
बीते एक दिन में 1200 से अधिक लोग संक्रमण से ठीक हुए हैं, हालांकि तीन और लोगों के मौत दर्ज की गई हैं। 15 जून (रविवार) को कुल 7383 एक्टिव मामले थे, जो अगले दिन यानी 16 जून को कम होकर 7264 हुए। 17 जून को इसमें और भी गिरावट आई है जब कुल एक्टिव मामले 6836 हो गए। यानी संक्रमण के मामलों में कमी लगातार जारी है।
स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, देश में भले ही कोरोना की रफ्तार में कमी आई है, पर संक्रमण के जोखिमों को लेकर अब भी सावधानी बरतते रहना जरूरी है। भारत में फैले कोरोना के कुछ वैरिएंट्स कई अन्य देशों में गंभीर चिंता बढ़ा रहे हैं, इसलिए कोरोनावायरस को हल्के में लेने की गलती न करें।
दो वैरिएंट्स निंबस और स्ट्राटस
कोरोना के दो वैरिएंट्स निंबस (Nimbus) और स्ट्राटस (Stratus) को लेकर इन दिनों काफी चर्चा है। कुछ रिपोर्ट्स में दावा किया जा रहा है कि इन वैरिएंट्स की संक्रामकता दर ओमिक्रॉन के पिछले वैरिएंट्स की तुलना में ढाई गुना तक अधिक हो सकती है। यानी कि जिस आबादी में ये वैरिएंट्स बढ़ना शुरू होते हैं वहां लोगों में तेजी से संक्रमण बढ़ने का खतरा हो सकता है।
क्या ये कोई नए वैरिेएंट्स हैं?
मेडिकल रिपोर्ट्स पर नजर डालें तो पता चलता है कि निंबस और स्ट्राटस कोई नए वैरिएंट्स नहीं हैं, बल्कि ये भारत में तेजी से फैल रहे NB.1.8.1 और XFG वैरिएंट्स का ही उपनाम हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने वर्तमान में छह कोरोना वैरिएंट्स को वैरिएंट अंडर मॉनिटरिंग के रूप में रखा है’– जिसका अर्थ है कि इनके बढ़ते प्रसार और संभावित स्वास्थ्य जोखिमों के कारण इनपर स्वास्थ्य अधिकारियों को प्राथमिकता के आधार पर ध्यान देने और ट्रैकिंग की आवश्यकता हो सकती है।
NB.1.8.1 और XFG भी उनमें से हैं। एनबी.1.8.1 को अनौपचारिक रूप से “निंबस” उपनाम दिया गया है, वहीं एक्सएफजी को स्ट्राटस कहा जा रहा है।
स्ट्राटस को माना जा रहा है अधिक संक्रामकता वाला
डब्ल्यूएचओ ने 23 मई 2025 को अपने लेटेस्ट अपडेट में बताया है कि NB.1.8.1 को लेकर किए गए प्रारंभिक शोध और साक्ष्य बताते हैं कि NB.1.8.1 ओमिक्रॉन वैरिएंट का ही एक रूप है, जिसकी प्रभाविकता और गंभीरता ज्यादा नहीं है। इस वैरिएंट की संक्रामकता दर जरूर अधिक होती है पर इससे अतिरिक्त सार्वजनिक स्वास्थ्य जोखिम नहीं हैं।
वहीं स्ट्राटस या XFG वैरिएंट का सबसे पहले कनाडा में पता चला था और इसने तेजी से वैश्विक आबादी को प्रभावित किया है। यूरोप में मई के अंत तक इसके 25% मामले थे, जबकि NB.1.8.1 के मामले 9% थे। यह भारत में भी फैल रहा है, यहां 11 जून तक कोरोना के 206 एक्टिव मामले थे जो 15 जून तक बढ़कर 7400 पहुंच गए थे। हालांकि अब इसमें लगातार कमी आ रही है।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
स्वास्थ्य विशेषज्ञ पहले से ही कहते रहे हैं कि भारत जैसे बड़े आबादी वाले देश में कोरोना के मामलों में इस तरह का उतार-चढ़ाव जारी रह सकता है। चूंकि संक्रमण का जोखिम लगातार बना हुआ है इसलिए सभी लोगों के लिए बचाव के निरंतर उपाय भी करते रहना जरूरी है। कोविड एप्रोप्रिएट बिहेवियर (मास्क, भीड़-भाड़ से बचाव, हाथों की स्वच्छता) का पालन करके संक्रमण की रफ्तार में कमी लाई जा सकती है।
देश में ओमिक्रॉन के सब-वैरिएंट्स (NB.1.8.1 और XFG) की इस लहर की शुरुआत में ही अमर उजाला से बातचीत में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ, गांधीनगर गुजरात में संक्रामक रोग-महामारी विशेषज्ञ डॉ अनीश सिन्हा ने कहा था कि देश में जिस तेजी से संक्रमण बढ़ेगा, उतनी ही तेजी से इसके मामलों में कमी आएगी।