बच्चों के उपचार में पीजीआई को मिलेगी प्राथमिकता, बढ़ेगी परेशानी

राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत बच्चों के उपचार में खर्च होने वाले बजट में लगातार कमी आ रही है। इसके साथ ही अब विभाग को निर्देश मिले हैं कि बच्चों को उपचार दिलाने के लिए पीजीआई को प्राथमिकता दी जाएगी।

ऐसे में अब यह बजट और कम हो जाएगा। इतना ही नहीं इससे अभिभावकों और बच्चों की भी परेशानी बढ़ेगी, क्योंकि सरकारी अस्पतालों में उपचार के लिए कई महीने तक बच्चों को इंतजार करना पड़ता है। इसके बाद ही बच्चों का उपचार किया जाता है। इन बच्चों में दिल और अन्य गंभीर ऑपरेशन के बच्चे शामिल होते हैं।

गंभीर रोगियों की होती है जांच
राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत विभाग की टीमें सरकारी स्कूलों और आंगनबाड़ी केंद्रों में जाकर बच्चों के स्वास्थ्य की जांच करती हैं। इसके बाद जिन बच्चों में कमियां मिलती है उन्हें डीईआईसी केंद्र में भेज दिया जाता है। जहां पर बच्चों की गहन जांच कराई जाती है। जांच के बाद बच्चे की बीमारी के आधार पर उपचार दिया जाता है। सामान्य बीमारियों के लिए सरकारी अस्पतालों में ही उपचार दिया जाता है। जबकि दिल और अन्य गंभीर बीमारियों के लिए निजी अस्पतालों और पीजीआई में बच्चे को भेजा जाता है।

पिछले वर्षों में यह रहा आंकड़ा
कार्यक्रम के तहत वर्ष भर में एक बार स्कूल और दो बार आंगनबाड़ी केंद्रों में जांच अभियान चलाया जाता है। जिले में 713 स्कूल हैं तो वहीं 1213 आंगनबाड़ी केंद्र। बीते वर्षों के आंकड़ों को देखें तो वर्ष 2022 से 23 में 76448 स्कूली बच्चे और 87 हजार 734, वर्ष 2023 से 2024 में 76944 स्कूली बच्चे, 90792 आंगनबाड़ी बच्चे, 2024 से 2025 में 80 हजार 431 स्कूली बच्चे और वहीं 96 हजार 22 आंगनबाड़ी बच्चों को जांचा है।

तीन वर्षों से घट रहा उपचार का बजट
वर्ष जिला स्तर पर उपचार मिला ग्रांट के साथ मिला उपचार कुल खर्चा रुपये
2022- 2023 123 97 7812559 रुपये
2023- 2024 116 73 5845433 रुपये
2024- 2025 133 41 3905500 रुपये
2025- 2026 6 4 73000 रुपये

निदेशालय की ओर से हमें मौखिक निर्देश मिले हैं। जिनके आधार पर पीजीआई व अन्य सरकारी संस्थानों को प्राथमिकता देने के लिए कहा गया है। निर्देशों के आधार पर ही कार्य किया जाएगा।
-डॉ. बलजिंद्र कौर, डिप्टी सीएमओ, राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम अंबाला।