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बिना सिफारिशी लोग आज भी धक्के खा रहे हैं: 78 साल पहले ठीक 15 अगस्त 1947 को भारत को आजादी मिली? यह आजादी एक दिन में, एक महीने में या कुछ महीनों में नहीं मिली इसके लिए बड़ा संघर्ष, बड़ा त्याग, बड़ी कुर्बानियां, बड़ी यातनाएं सही, फांसी के फंदों को देशभक्तों ने चूमा, गोलियां खाई, सिर पर लाठियां खाकर शहादत दी तब जाकर तिरंगा हासिल हुआ तब जाकर आजाद भारत को संविधान मिला और देश का संविधान जो आजाद होने के तकरीबन 3 साल बाद 26 जनवरी 1950 को मिला
भारत का विधान स्पष्ट शब्दों में कहता है कि सभी नागरिक एक समान हैं कोई जात पात नहीं कोई भेदभाव नहीं कोई छूआछूत नहीं और भारत का संविधान यह भी सुनिश्चित करता है कि कोई भूख के अभाव से न मरे कोई ईलाज के अभाव से न मरे, किसी के साथ ज्यादती न हो बनता हक सबको मिले लेकिन क्या 78 वर्ष बाद भी यह बातें लागू हैं?
क्या देश के संविधान के तहत सरकारें व उनकी मशीनरी चल रही है आज जिस आदमी के पास सिफारिश नहीं है वह अपना काम करवाने के लिए छोटे से छोटे दफ्तर से लेकर बड़े से बड़े दफ्तर में धक्के खा रहा है यही नहीं पैसे न होने के कारण ईलाज नहीं हो पा रहा और सिफारिश है नहीं और बिना सिफारिश से चाहे अफसर हों या डॉक्टर कोई सुनता नहीं है।
जो सीधे तौर पर सरकारें व उसके प्रशासनिक अधिकारी संविधान की धज्जियां उड़ा रहे हैं बुरा हाल है गरीब की आज भी कोई सुनवाई नहीं क्योंकि उसके पास कोई सिफारिश नहीं ऐसा लगता है कि अब तो आजाद भारत की सरकारों व उसके अधिकारियों के खिलाफ भी एक जन आंदोलन तैयार करने की जरूरत आ गई है क्योंकि कहते हैं कि एक्सेस आॅफ एवरीथिंग इज बेड अर्थात अब सरकारों की मनमर्जी सिर चढ़कर बोलने लग गई है और बिना सिफारिशी लोगों की हालत बद से बदत्तर हो गई है जो शहीदों का भी बहुत बड़ा अपमान है।