लिव-इन-रिलेशन सनातन संस्कृति का हिस्सा नहीं: यह किस तरह का कलयुग आ गया है जहां शर्म, हया, मर्यादा सब खत्म हो चुकी है जबकि हमारा भारत, हमारा देश ऋषि मुनियों का देश है, पीरों फकीरों का देश है यहां पर आस्था इतनी है कि मिट्टी पूजी जाती है, गोबर पूजा जाता है, पानी पूजा जाता है, जहां नगर खेड़े का सम्मान अपने पूर्वजों की तरह किया जाता है उस मेरे देश की संस्कृति आखिर कहां चली गई?
भाजपा हाईकमान क्यों दे रही है चंद मुट्ठी भर लोगों को हवा?
झूठे मुकदमें व जांच करने वाले पुलिस अधिकारी बर्खास्त होने चाहिए
आज लिव-इन-रिलेशन के नाम पर विवाहित महिलाएं, अविवाहित महिलाएं बंद कमरे में एक अजनबी पुरूष के साथ रहने लगी हैं यह कहां की मर्यादा है, हमारी संस्कृति में तो जिस घर में बेटी पैदा हो उसमें माता पिता कपड़ों की मर्यादा स्वयं ध्यान में रखते हैं अगर पिता गाली दे देता था तो पत्नी टोकती थी कि घर में जवान बेटी है आप क्या बोल रहे हो और अब खुद मां बाप नौकरी के नाम पर लिव-इन-रिलेशन में भेज देते हैं और बाद में लिव इन रिलेशन में रहने वाली महिलाएं उन्हीं पुरूषों पर रेप के मुकदमें दर्ज करवाती हैं।
पुरानी कहावत है आग और फूस का क्या रिश्ता है यह सबको पता होना चाहिए। बंद कमरे में औरत अपने पति के साथ ही पवित्र रह सकती है और देश की न्यायपालिका इसको उचित समझती है यही कारण है कि उन्होंने लिव-इन-रिलेशनशिप को कानूनी बना दिया। देश की खाप पंचायतों को आगे आना चाहिए अपनी भारतीय संस्कृति को बचाना चाहिए न कि नौकरी के नाम पर लड़कियों को बाहर भेजकर मां बाप भी लिव इन रिलेशनशिप में रहने की इजाजत देंगे फिर घर के संस्कार, घर की मर्यादा देर सवेर तार तार होना तय है।
खूब लिखा किसी शायर ने ‘‘तेरा घर भी शीशे का, मेरा घर भी शीशे का, तेरे हाथ में भी पत्थर, मेरे हाथ में पत्थर, तू भी सोच मैं भी सोचूं’’ इसलिए भले ही देश की न्यायपालिका कोई भी फैसला दे लेकिन देश में संस्कारों को खत्म करने की इजाजत देश की न्यायपालिका भी नहीं दे सकती।