असीम गोयल दिन प्रतिदिन अम्बाला की जनता के दिलों में स्थान बना रहे हैं

असीम गोयल दिन प्रतिदिन अम्बाला की जनता के दिलों में स्थान बना रहे हैं

वीरेश शांडिल्य की कलम से 
संपादकीय : 2014 में भले ही असीम गोयल भाजपा का टिकट लेकर मोदी लहर में जीत गए लेकिन 2019 में उन्होंने पार्टी से टिकट काबलियत के आधार पर लिया, अपने विकास कार्यों के आधार पर लिया और कहीं ना कहीं केंद्र व राज्य में भाजपा थी और दोनों के पास खुफिया रिपोर्ट भी असीम गोयल के पक्ष में रही होगी। अन्यथा मोदी और अमित शाह जैसी जोड़ी के सामने भाजपा में मनमर्जी करने वाला और भाजपा को जेबी पार्टी समझने वाला एक बार ही कामयाब हो सकता है। लेकिन पार्टी हाईकमान ने असीम गोयल पर विश्वास जताया और उसे 2019 में पुन: विधानसभा टिकट दिया। और पार्टी में विरोध होने के बावजूद भी और आजाद उम्मीदवार निर्मल सिंह के साथ इनैलो, बसपा, अकालीदल होने के बाद भी यही नहीं कांग्रेस के 2014 में उम्मीदवार रहे हिम्मत सिंह भी निर्मल सिंह के सारथी बनकर रहे लेकिन उसके बावजूद भी असीम गोयल ने सम्मान जनक जीत दर्ज कर पार्टी का परचम लहराया। और यदि भाजपा को 40 सीटें ना मिलती भाजपा अपने दम पर सरकार बनाती तो असीम गोयल हरियाणा की कैबिनेट में मनोहर लाल खट्टर के मंत्री भी होते।
लेकिन असीम गोयल इस बात की परवाह किए बिना एक चौकीदार की तरह, एक सेवक की तरह फिर जुट गए और राजनीति से ऊपर उठकर उनका मानवता का चेहरा 2019 में कोरोना महामारी में लोगों के सामने आया। असीम गोयल ने अपनी जान की परवाह ना करते हुए शुगर होते हुए जरूरतमंदों की, भूखे प्यासों की मदद की, लगातार जरूररत मंदों को राशन बांटा, यही नहीं प्रवासी मजदूरों के लिए खाने, पीने, रुकने की व्यवस्था करवाई। जख्मी पैरों पर खुद मलहम लगाया, नंगे पांव को चप्पल दी, प्रवासी मजदूरों को उनके घर तक पहुंचाने के लिए रेल बस की व्यवस्था की। यह काम कर उन्होंने अपने इलाके, अपने जिले, अपने प्रदेश व देश् के लोगों में जगह बनाई, पार्टी में सम्मान बनाया। और असीम गोयल ने यह साबित किया कि वह वाक्य ही नगर सेवक हैं, लोगों के हमदर्द हैं। पुरानी कहावत है डंडे के वार को रोका जा सकता है लेकिन जुबान के वार को नहीं। लोग तो भगवान को भी गाली दे देते हैं तो असीम तो क्या चीज। लेकिन फिल्हाल असीम गोयल का अम्बाला शहर में राजनीतिक विकल्प कोई नहीं है। 2019 में उन्हें हराने वालोें ने एड़ी चोटी का जोर लगा लिया और जीतने के बाद असीम गोयल में हर आदमी के प्रति अपनापन आया। कोरोना ने भी असीम गोयल को बदलने का काम किया क्योंकि पहले असीम में गुस्सा था अब तो उनका उद्देश्य नर सेवा नारायण सेवा व अम्बाला शहर का नाम देश दुनिया में रोशन करना है।