सरकारें बदले की भावना कब छोड़ेंगी? 12 दिन पहले ही पूरे देश ने आजादी दिवस मनाया और क्यों न मनाये इस दिन भारत आजाद हुआ था और यह आजादी तब मिली जब अनेकों शूरवीरों ने फांसी के फंदे चूमे फिर जाकर आजादी मिली लेकिन जो सोच रखकर शहीदों ने फांसी के फंदे चूमे आजादी जरूर मिली आज 140 करोड़ जनता आजादी की हवा में सांस ले रही है
हरियाणा की राजनीति में अभय सिंह चौटाला से दमदार कोई नेता नहीं
छेड़ कर देख लो आज भी अनिल विज में करंट 440 वाट का ही है
उसका कारण वह तमाम शहीद हैं जिन्होंने अंग्रेजी हुकूमत की प्रताड़नाएं झेली और खुशी खुशी फांसी के फंदों को चूमा लेकिन क्या देश आजाद आम जनता के लिए है? क्या आम जनता को इंसाफ मिलता है? क्या आम जनता आज भी भरपेट खाना खाकर सोती है क्यों आज भी फुटपाथों पर आजाद भारत के लोग सोते हैं?
क्यों ईलाज के अभाव से लोग मर रहे हैं? क्यों सरकारें आम जनता की सुध नहीं लेती बल्कि सत्ता का प्रयोग विरोधियों को सबक सिखाने के लिए किया जाता है क्या यह बात शहीद शूरवीरों की आत्माओं को दुखी नहीं करती होगी? केंद्र व राज्य सरकारों को चिंतन करना होगा कि हम कैसे अपने शहीदों की सोच पर पहरा दें और जो वायदे आम जनता को करके सत्ता में आते हैं उन वायदों को पूरा कर यह महसूस करवाया जाए कि देश आजाद है।