शिक्षित युवा के संस्कारों को बेलगाम होते देखा तो जीने की इच्छा खत्म हुई

शिक्षित युवा के संस्कारों को बेलगाम होते देखा तो जीने की इच्छा खत्म हुई: हम सामाजिक ताने बाने से जुड़ कर, सामाजिक रीति रिवाजों से जुड़ कर एक ऐसा माहौल बनाते हैं कि उस माहौल में हमारे बच्चे, हमारा कुटुंब फले फुले, बुलंदियां हासिल करे और यही सोच कर हम अपने बच्चों को उच्च तालीम देते हैं उनके लिए समर्पण भाव रखते हैं, उनके हर सपने को पूरा करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा देते हैं कि हमारे बच्चे लायक होकर परिवार का नाम रोशन करें।

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लेकिन पिछले कुछ दिनों से विचलित हूं, दुखी हूं और लगातार मन में न जीने के ख्याल आते हैं क्योंकि शिक्षित बच्चों को संस्कारों से बेलगाम होता देख ऐसा लगता है कि ऐसी शिक्षा का क्या फायदा जहां जुबान में रस न हो, सभ्यता न हो और बिना कुछ सोचे, बिना कुछ समझे अगर पैदा किए हुए बच्चे ही संस्कारों को आग लगाकर उन लोगों को नीचा दिखाएं जिन्होंने जन्म दिया तो फिर जीने की इच्छा कहां रह जाती है

लेकिन मुझे पिछले 7 दिन में संसार में बहुत कुछ सीखने को मिला और 3 दिन लगातार अकेले 1850 किलोमीटर गाड़ी चलाई और इस दौरान बहुत सी चीजें सीखने का मौका मिला कि अगर पैदा किए हुए बच्चे आपको मरने के लिए मजबूर करें तो उनको अपने ऊपर भारी पड़ने मत दें उन्हें त्यागना ज्यादा उचित है।

मेरे परिवार में दो घटनाएं ऐसी हुई जो मेरे परिवार के ही बच्चों द्वारा की गई जिसमें मुझे नीचा दिखाने का प्रयास किया गया। हालांकि असली शिक्षा वो जो गंदगी का मुकाबला गंदगी से न करे और मैंने गंदगी का जवाब गंदगी से न देकर उन परिजनों को त्याग दिया जिन्होंने अपनी औकात से बाहर आकर मुझे चुनौती दी। अगला भविष्य किसका क्या है किसी को नहीं पता लेकिन पुरूषार्थ करना मुझे खूब आता है फल मेरी किस्मत में होगा तो तय है।