सब कुछ सीखा हमने न सीखी होशियारी

सब कुछ सीखा हमने न सीखी होशियारी: सच लिखना आसान नहीं होता, सच बोलना आसान नहीं होता, सच को लेकर जन आंदोलन खड़ा करना आसान नहीं होता, सच के साथ खड़ा होना आसान नहीं होता, सच के साथ खड़े होने वाला इंसान आग के दरिया को पार करता है

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अगर समाज में गंदे न हो तो अच्छों की पहचान कैसे हो, अगर धोखेबाज न हो तो ईमानदार लोगों की पहचान कैसे होगी, अगर झूठे लोग समाज में न हो तो सच्चे लोगों की पहचान कैसे होगी? यह संपादकीय मैं समाज को समर्पित कर रहा हूं, कई दशकों पहले गीता लिखा गया ‘‘सबकुछ सीखा हमने, न सीखी होशियारी’’ अर्थात अगर होशियारी सीख ली होती

तो हम भी आज सिकंदर की तरह पैसे वाले होते जिस तरह सिकंदर ने लूटा वर्तमान में, समाज में बहुत लोग सिकंदर बन लूट रहे हैं लेकिन सभी ऐसे नहीं हैं और कैसे सभी एक जैसे हो सकते हैं जब भगवान ने हाथों की पांचों ऊंगलियां एक जैसी नहीं बनाई तो फिर हर व्यक्ति बुरा नहीं हो सकता, हर व्यक्ति ईमानदार नहीं हो सकता। पिछले कुछ दिनों से लगातार अंबाला शहर के पूर्व विधायक असीम गोयल के चमचे, गुर्गें, पेड इंप्लाइज सरकारी नौकरी कर रहे बीजेपी के पदाधिकारी सोशल मीडिया पर दुष्प्रचार बिना नाम लिखे कर रहे हैं

जबकि मर्द आदमी पीठ के पीछे से हमला नहीं करता वह जो लिखता है डंके की चोट पर लिखता, जो बोलता है डंके की चोट पर बोलता है इसलिए असीम गोयल जिसके खिलाफ भी बोल रहा है उसके खिलाफ खुद प्रैस कांफ्रेंस कर या अपने सोशल मीडिया पेज से पोस्ट डाल फिर असीम गोयल को सामने वाला जवाब देगा। इस संपादकीय में मैं न तो किसी को कुत्ता लिखकर खुद हाथी बनना चाहता हूं मैं तो असीम गोयल के गुर्गों को एक सलाह देना चाहता हूं कि जब तुम्हारा माई बाप इतना दम नहीं रख रहा कि अपने उस विरोधी की पोस्ट खुद अपने सोशल पेज से डाल दे। गरीब आदमियों को हमेशा इस्तेमाल किया जाता है। असीम गोयल में दम है तो वो खुद बोले फिर पता चल जाएगा अपनी औकात का।