सच बोलने वाले व लिखने वाले को आग का दरिया पार करना ही पड़ता है: हरिओम पंवार की कविता की लाइनें ‘‘हम वो कलम नहीं जो झुक जाती हों दरबारों में हम शब्दों की दीपशिखा है अंधियारों चौबारों में हम वाणी के राजदूत हैं सच पर मरने वाले हैं डाकू को डाकू कहने की हिम्मत रखने वाले हैं।
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यह लाइनें जीवन में मजबूती से अपने दिल दिमाग में उतारी हुई हैं और मेरे पिता की चंद लाइनें मेरी आत्मा में है कि जीवन में अपनी नीति और नियत साफ रखना और जबतक दुश्मनी निभानी नहीं सिखोगे तब तक दोस्ती नहीं निभा सकते।
मेरे पिता डॉक्टर राममूर्ति शर्मा ने दुष्प्रचार व साजिश करने वालों के लिए लाइनें लिखी थी ‘‘कमीने तो कमीनी हरकतें करते जमाने में वो सबसे बड़े कमीने हैं जो कमीनों की बातों में आते हैं’’ अखबार का मतलब अपनी बात खुलकर लिखना, लोगों की बात को सरकार, प्रशासन तक पहुंचाना और कड़वी बात लिखते हुए तीखी बात लिखते हुए धारदार बात लिखने से पीछे नहीं हटना तभी शायर अकबर इलाहाबादी ने लिखा ‘खींचो न कमानों को तलवार निकालो, जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालो’ अखबार में प्रशासन का गुणगान करना सरकार की चाटूकारिता करना बहुत आसान है
लेकिन सरकार को आगाह करना, सरकार को शीश दिखाना, सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ लिखना, किसी भ्रष्ट अधिकारी या मंत्री के खिलाफ लिखना और सरकार जो सो रही होती है उसे जगानेवाला अखबार कहलाता है और ऐसा करने वाले अखबार के संपादक को आग के दरिया से पार होना पड़ता है कई तरह की प्रताड़नाएं सहनी पड़ती है फिर उसकी लिखी हुई बात समाज व सरकार समझती है इसलिए अखबार निकालो लेकिन किसी से द्वेष भावना रखकर नहीं बल्कि सच्चाई जनता तक सरकार तक व प्रशासन तक पहुंचे क्योंकि अदालतें व मीडिया एक पीड़ित का बहुत बड़ा सहारा बनता है जब उसे सरकार व प्रशासन पूछता नहीं।