जिस दिन डरूंगा उस दिन मरना पसंद करूंगा

जिस दिन डरूंगा उस दिन मरना पसंद करूंगा: आज यह संपादकीय लिखने से पहले मुझे गाना याद आ गया ‘‘हम बंजारों की बात मत पूछो जी, जो प्यार किया तो प्यार किया जब नफरत की तो नफरत की’’ गाने के शब्द नपे तूले हैं लेकिन शब्दों का अर्थ मील पत्थर है।

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शब्द ही ऐसी चीज होते हैं जो तलवार की धार से तेज होते हैं जो चक्रवर्ती हवाओं से खतरनाक होते हैं और शब्दों के बारे में कहा गया कि यह दिल में भी उतार देते हैं और दिल से भी उतार देते हैं।

लेकिन जीवन में जिस व्यक्ति के चुनौतियां नहीं है बुरा समय नहीं है जिसने कभी आग के दरिया को नहीं तैरा वह इंसान संपूर्ण नहीं है न ही वह इंसान संघर्षशील हो सकता है। संघर्ष के लिए आपको बड़ी कुर्बानियां देनी पड़ती हैं और कई बार तो युद्ध दुश्मन से नहीं अपनों से भी लड़ना पड़ता है उसके लिए भयभीत होने की जरूरत नहीं, विचलित होने की जरूरत नहीं।

जो भी योद्धा को ललकारेगा योद्धा का यह फर्ज बनता है कि वह युद्ध में जीत के लिए जवाब दे, युद्ध में तमाम नीतियों को लागू रखे जैसे भगवान श्री कृष्ण ने पांडवों से कौरवों से जीत के लिए लड़वाया। युद्ध हारने के लिए नहीं जीतने के लिए लड़ना चाहिए।

युद्ध लड़ने से पहले ही हथियार नहीं डालने चाहिए और जब युद्ध अपने लड़े तो शिद्धत से युद्ध लड़ना चाहिए। मेरा तो मानना यह है कि लड़ों तो लड़ाकू की तरह न कि कमजोर व्यक्ति की तरह।

जो व्यक्ति आप पर जैसे प्रहार कर रहा है उसको वैसे ही जवाब दो वो चाहे आपका अपना है, दुश्मन है, सगा है इस बात की परवाह न करें क्योंकि दो बार दुनिया में कोई नहीं मरता, एक बार मरो योद्धा की मौत मरो। दुश्मन अपना हो या बेगाना जब आपको मारने के लिए तैयार हो गया तो उससे पहले उसे खत्म कर दो यही युद्ध का सिद्धांत है।