देश को पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव जैसे नेताओं की जरूरत: वीरेश शांडिल्य

देश को पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव जैसे नेताओं की जरूरत: वीरेश शांडिल्य: वीरेश शांडिल्य ने कहा कि जब मैंने प्रधानमंत्री होते हुए बताया कि वह आतंकवाद के खिलाफ जन आंदोलन तैयार कर रहे हैं तो प्रधानमंत्री होते हुए पीवी नरसिम्हा राव ने उनके आतंकवाद के खिलाफ लड़ने की सराहना की थी’’

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भारत के पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव का इतिहास तो देश के शिक्षण संस्थानों में पढ़ाया जाना चाहिए क्योंकि वह 17 भाषाओं के ज्ञाता थे जब वह विदेशों में जाते थे तो भारत का डंका बजता था’’

अंबाला। (ज्योतिकण): 1991 से 1996 तक भारत के प्रधानमंत्री रहे पीवी नरसिम्हा राव जैसे नेताओं की आज इस देश की राजनीति को जरूरत है उपरोक्त शब्द एंटी टेरोरिस्ट फ्रंट इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष वीरेश शांडिल्य ने भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव के जन्मदिन पर उन्हें याद करते हुए कहे। 17 भाषाओं के ज्ञाता पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव देश की राजनीति के एक स्तंभ थे और देश को मजबूत करने के साथ साथ देश की संस्कृति को बचाने की सोच रखने वाले प्रधानमंत्री थे।

एंटी टेरोरिस्ट फ्रंट इंडिया व विश्व हिन्दु तख्त प्रमुख वीरेश शांडिल्य ने कहा कि आज देश में नरसिम्हा राव जैसे नेता चिराग लेकर खोजने जाएं तो भी नहीं मिलते। वीरेश शांडिल्य ने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव सही मायनों में भारत रत्न थे और उन्हें गर्व है कि मुझे बतौर प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव को मिलने का मौका मिला उनसे संवाद करने का मौका मिला और जब मैंने प्रधानमंत्री होते हुए बताया कि वह आतंकवाद के खिलाफ जन आंदोलन तैयार कर रहे हैं तो प्रधानमंत्री होते हुए पीवी नरसिम्हा राव ने उनके आतंकवाद के खिलाफ लड़ने की सराहना की थी।

वीरेश शांडिल्य ने पूर्व प्रधानमंत्री के जन्मदिन पर बस यह शब्द कहा कि वह उस कोख को नमन करते हैं जिसने पीवी नरसिम्हा राव जैसे भारत रत्न को जन्म दिया और वीरेश शांडिल्य ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मांग की कि जितने भी भारत के प्रधानमंत्रियों को भारत रत्न मिला है उनकी प्रतिमाएं हर राज्य के विधानसभा और सिविल सचिवालयों में लगे और उन प्रधानमंत्रियों की प्रतिमाएं देश के तमाम शिक्षण संस्थानों में लगे और भारत के पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव का इतिहास तो देश के शिक्षण संस्थानों में पढ़ाया जाना चाहिए क्योंकि वह 17 भाषाओं के ज्ञाता थे जब वह विदेशों में जाते थे तो भारत का डंका बजता था।