आत्महत्या से अच्छा उन लोगों को बर्बाद कर दो जो आपको उकसाते हैं: जिस तरह हरियाणा के एडीजीपी वाई पूरण कुमार जो एक नेक इंसान, ईमानदार आईपीएस अधिकारी थे जिस तरह उन्होंने आत्महत्या की इस घटना को छोटी घटना नहीं कहा जा सकता
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अगर एडीजीपी वाई पूरण कुमार को आत्महत्या करने पर इंसाफ न मिला तो फिर हर दुखी व्यक्ति अपने जीवन की लीला वाई पूरण कुमार की तरह खत्म कर लेगा। वैसे तो मरना किसी चीज का हल नहीं है योद्धा हमेशा जंग लड़ता है

मानव जन्म मिलना कोई आसान बात नहीं है कर्इं योनियों का सफर तय कर इंसान के रूप में जन्म होता है लेकिन कुछ लोग मानव जन्म लेकर खुद ही अपनी जीवन लीला को समाप्त कर लेते हैं।
जिसे आत्महत्या का नाम दिया जाता है इसमें कोई दो राय नहीं कि आत्महत्या करने का फैसला आसान नहीं होता बहुत बड़ा दबाव जब आ जाता है तभी जीवन लीला को खत्म करने का फैसला इंसान लेता है लेकिन क्या कभी मरने वाले ने यह सोचा कि जो तुझे आत्महत्या करने के लिए उकसा रहे हैं, आत्महत्या के लिए मजबूर कर रहे हैं
क्यों न उनकी ही बर्बादी सुनिश्चित कर दी जाए जब मरने वाले ने फैसला ले लिया कि मैं मरूंगा तो वह आत्महत्या जैसा घटिया कदम क्यों उठा रहा है जो लोग आत्महत्या करने के लिए मजबूर कर रहे हैं उन्हें ही मारकर सारी जिंदगी जेल में रहना ज्यादा बेहतर है इससे एक तो आत्महत्या करने के लिए मजबूर करने वाले 7 जन्म याद रखते हैं और एक समाज में संदेश जाता है कि मरने से अच्छा मारना है।
जेल में जिंदा तो रहोगे, सरकारी खर्चे पर रोटी भी मिलेगा, कपड़ा भी मिलेगा, दवाई भी मिलेगी। आज समाज में रिश्तो की बुनियाद रेत की नींव से भी कमजोर हो चुकी है। जिस तरह हरियाणा के एडीजीपी वाई पूरण कुमार जो एक नेक इंसान, ईमानदार आईपीएस अधिकारी थे जिस तरह उन्होंने आत्महत्या की इस घटना को छोटी घटना नहीं कहा जा सकता।
देश की पूरी ब्यूरोक्रेसी आज सोचने पर मजबूर है कि एक आईपीएस अधिकारी ने स्वयं को गोली मारकर आत्महत्या कर ली। आखिर वह कितना मजबूर रहा होगा, उसको मारने वालों ने किस तरह अभिमन्यु की तरह चक्रव्यू में घेर उसे मरने के लिए विवश कर दिया। वाई पूरण कुमार उनके अच्छे मित्र थे उनका जाना दुखदायक है तकलीफदायक है उन्होंने कुर्सी पर बैठकर इंसाफ देने का काम किया।
जो सोचकर वर्दी पहनी जाती है उस सोच को लागू करते हुए पीड़ितों को न्याय देने का काम वाई पूरण कुमार ने किया है लेकिन जिस ढंग से वाई पूरण कुमार ने आत्महत्या की पूरे देश को झिंझोड़ कर रख दिया। हरियाणा सरकार, ब्यूरोक्रेसी वाई पूरण कुमार का परिवार उनके सगे संबंधी, मित्रगण व शहरवासी, मोहल्लावासी, सेक्टर वासी उनके राज्य के लोग सोचते होंगे कि एक हरियाणा का होनहार आईपीएस ने आत्महत्या कर ली जो अभी कुछ दिन पहले ही एडीजीपी बना जिसने हमेशा कानून पर विश्वास किया, संविधान पर विश्वास किया।
मुझे नहीं पता वाई पूरण कुमार ने आत्महत्या क्यों की लेकिन केंद्र व राज्य सरकार को इसकी तह तक पहुंचना चाहिए। अगर एक आईपीएस अधिकारी जिसका लेवल एडीजीपी है जब उसे मरने के लिए उकसाया जा सकता है तो वीरेश शांडिल्य जैसे लोगों की कोई औकात नहीं है।
हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सैनी को इस पर गंभीर चिंतन करना होगा और वाई पूरण कुमार के परिवार को इंसाफ दिलाना होगा और देश के गृह मंत्री अमित शाह को भी अब अपनी तीसरी आंख खोलनी होगी। अगर एडीजीपी वाई पूरण कुमार को आत्महत्या करने पर इंसाफ न मिला तो फिर हर दुखी व्यक्ति अपने जीवन की लीला वाई पूरण कुमार की तरह खत्म कर लेगा।
वैसे तो मरना किसी चीज का हल नहीं है योद्धा हमेशा जंग लड़ता है और जंग के मैदान में ही जीत हार के फैसले होते हैं इसलिए समाज में कोई भी व्यक्ति या परिवार किसी को मरने के लिए मजबूर करे तो मरने का फैसला लेने से बेहतर है मारने की साजिश रचने वाले को बर्बाद कर जिंदगी जेल में काटना ज्यादा अच्छा है।
मैं वाई पूरण कुमार को श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं, आशा करता हूं कि हरियाणा सरकार अपने होनहार आईपीएस अधिकारी वाई पूरण कुमार को आत्महत्या करने के लिए मजबूर करने वाले चेहरों को न केवल बेनकाब करेगी बल्कि उन चेहरों को जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाने का काम करेंगे इससे पूरे देश में नायब सैनी सरकार की छवि मजबूत होगी।
आज नायब सैनी राज्य के मुख्यमंत्री हैं लेकिन गृह मंत्री भी नायब सैनी स्वंय हैं और उनके राज्य के एक आईपीएस अधिकारी ने आत्महत्या कर ली जो एक चुनौती हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सैनी के लिए भी है और देश के आईएएस व आईपीएस अधिकारियों सहित केंद्र सरकार को सोचना होगा कि आत्महत्या करने के लिए मजबूर करने वालों का क्या ईलाज होना चाहिए।
जो अधिकारी कल तक खाकी पहनकर संविधान की शपथ लेकर पीड़ितों को न्याय दे रहा था आखिर उसके साथ क्या अन्याय हुआ कि उसने अपनी जीवन लीला गोली मारकर खत्म कर ली। समाज को भी इस घटना के बाद जनआंदोलन खड़ा करना होगा।