कैबिनेट मंत्रियों की सुनवाई नहीं होती क्या यह बात सही है: पिछले कई वर्षों से जबसे भूपेंद्र सिंह हुड्डा सीएम बने उसके बाद मनोहर लाल खट्टर बने और वर्तमान में नायब सैनी मुख्यमंत्री हैं। आम तौर पर सुनने में आता है और कई बार तो खुद कैबिनेट मंत्री ही बोल देते हैं उनकी अपनी ही सरकार में कोई सुनवाई नहीं होती, वह तो चपरासी भी नहीं बदलवा सकते।
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इस बात में कितनी सच्चाई है यह तो पता नहीं लेकिन हर तीसरा आदमी हरियाणा में यह जरूर कहता सुना गया कि हरियाणा में मंत्रियों के पल्ले कुछ नहीं है।
आखिर इस तरह का प्रचार मुख्यमंत्री नायब सैनी क्यों होने दे रहे हैं इस पर गंभीर चिंतन होना चाहिए जो मंत्री जिस विभाग का मंत्री है उसे अपने विभाग में काम करवाने की ट्रांसफर करने की सस्पेंड करने की पॉवर होनी चाहिए तभी एक कैबिनेट मंत्री अपने विभाग की परफोर्मेंस अपने विभाग के मुख्यमंत्री के समक्ष रख सकता है
लेकिन हरियाणा में तो सब उलट चल रहा है यहां तो मंत्री ही कह देते हैं कि भाई उनके पल्ले कुछ नहीं है बस गाड़ी घोड़ा सुरक्षा कोठी है। हरियाणा के जेल मंत्री डॉ. अरविंद शर्मा को तो साक्षात अंबाला के जेल अधीक्षक सतविंदर गोदारा ने नीचा दिखाया और उनका आदेश नहीं माना लेकिन डॉ. अरविंद शर्मा अंबाला जेल अधीक्षक का कुछ नहीं बिगाड़ सके।
इसलिए इस परंपरा को खत्म होना चाहिए। लोकतंत्र में सभी विधायक जीत कर आएं हैं और उन्हें राज्यपाल शपथ दिलाकर मंत्री पद देते हैं जो विभाग उनको आवंटित किए जाते हैं उन विभागों में उनकी पूरी चलनी चाहिए उसमें मुख्यमंत्री का कोई हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए फिर एक कैबिनेट मंत्री अपने हल्के में और अपने प्रदेश की जनता को दिखा सकता है कि उसके पास क्या काब्लियत है अगर अधिकारी नहीं होगा तो मंत्री क्या परमॉर्मेंस दिखाएगा।