बाढ़ पर राजनीतिक रोटियां सेंकना उचित नहीं

बाढ़ पर राजनीतिक रोटियां सेंकना उचित नहीं: बाढ़ एक प्राकृतिक आपदा है। कहते हैं आदमी सब से लड़ सकता है सबका विकल्प बन सकता है लेकिन एक कुदरत का विकल्प नहीं बन सकता इसलिए कहते हैं कि कुदरत का कहर और इसी को कहते हैं भगवान की लाठी बेआवाज।

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कभी वो बाढ़ के रूप में, कभी वह सुखे के रूप में, कभी ओला वृष्टि के रूप में। मौसम विभाग कुदरत को चुनौती देने का प्रयास करता है और मौसम का रूख बताता है और कई बार तो मौसम विभाग कहता है कि आज बरसात होगी आज येलो अलर्ट है लेकिन एक बूंद भी नहीं बरसती। इसी का नाम कुदरत है इसी का नाम नीली छतरी वाला है इसी का नाम महाराज है।

आज पूरा देश तकरीबन बाढ़ की चपेट में है जो सरकार व प्रशासन के हाथ में नहीं है। अगर किसी अन्य राज्य के बारिश का पानी किसी क्षेत्र में चला जाए तो बाढ़ तय है और प्रशासन व सरकार की सभी प्लानिंगें चौपट हो जाती है इसलिए देश की राजनीतिक पार्टियों को बाढ़ के मामले में राजनीति नहीं करनी चाहिए, संवेदनशील रहना चाहिए। कोई भी सरकार हो कभी यह नहीं चाहेगी कि उनके राज्य में बाढ़ आए, अकाल पड़े, अपराध बढ़े, अफरा तफरी हो।