भले ही हरियाणा कांग्रेस के जिलाध्यक्षों की सूची कांग्रेस हाईकमान ने जारी कर दी और अंबाला शहर छावनी व ग्रामीण के जिलाध्यक्ष बन गए हैं लेकिन उसके बावजूद भी हुड्डा, सैलजा, सुरजेवाला नाम की गुटबाजी खत्म नहीं हो रही।
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अगर कहीं हुड्डा कैंप का जिलाध्यक्ष बन गया तो सैलजा व सुरजेवाला समर्थक नाराज और अगर सैलजा, सुरजेवाला समर्थक जिलाध्यक्ष बन गया तो हुड्डा खेमा नाराज। आखिर यह चल क्या रहा? आखिर यह चल क्यों रहा है? या फिर हरियाणा में कांग्रेस ने यह फैसला ले लिया है कि यहां पर भाजपा ही सत्ता में रहे आज एक साल होने को आ गया है
आज तक हरियाणा सरकार में विपक्ष का नेता भी कांग्रेस तय नहीं कर पाई आखिर यह गुटबाजी कब खत्म होगी? कब कांग्रेस से गुट नाम का शब्द खत्म होगा और सभी कांग्रेसजन कहलाएंगे या फिर राहुल गांधी चाहते ही नहीं कि कांग्रेस में गुटबाजी खत्म हो। पुरानी कहावत है खरबूजा छूरी पर गिरे या छूरी खरबूजे पर कटना हर हाल में खरबूजे ने है।
हरियाणा में हुड्डा, सैलजा व सुरजेवाला गुट के कुछ लोग लड़ रहे हैं लेकिन कमजोर कांग्रेस हो रही है वो कांग्रेस जिसको मजबूत करने के लिए राहुल गांधी हजारो किलोमीटर पदयात्रा की आखिर कब समझ आएगा इन कांग्रेसियों को गुटबाजी का नुकसान।
इस बार तो यदि कांग्रेस संगठित होती गुटबाजी में न बंटी होती तो आज हरियाणा में कांग्रेस की सरकार स्पष्ट बहुमत से होती लेकिन अब भी कांग्रेस कार्यकर्ताओं व कांग्रेस नेताओं की बुद्धि भ्रष्ट हुई है और वह दूसरे की दोनों फोड़ने के चक्कर में अपनी एक फोड़ने को तैयार हैं मतलब यह स्पष्ट है कि गुटबाजी फैलाने वाले नेता कांग्रेसी नहीं हैं बल्कि अपने हित साधने के लिए कांग्रेस का झंडा उठाए हुए हैं और अब जो कांग्रेस अध्यक्ष हरियाणा में बने हैं कांग्रेस इस गलत फहमी से बाहर आए कि अब कांग्रेस मजबूत हो जाएगी इसके लिए तो राहुल गांधी को अपने जैसे कई जौहरी तलाश करने होंगे।