सिर्फकहने को हैं पब्लिक सर्वेंट, सोच राजे महाराजों जैसी: कई बार तो आंखों से देश के हालात देखकर समाज के हालात देखकर, सिस्टम के हालात देखकर, प्रशासन के हालात देखकर, सरकार के हालात देखकर आंखों से पानी नहीं खून के आंसू निकलते हैं। और लोग भी सिस्टम के खिलाफ खड़ा नहीं होना चाहते बस यह कहकर खामोश हो जाते हैं कि सिस्टम के खिलाफ कौन लड़ेगा? क्या इसी दिन के लिए भगत सिंह, राजगुरू, सुखदेव, खुदीराम बोस, राम प्रसाद बिस्मिल, मदन लाल ढींगरा, करतार सिंह सराबा, असफाक उल्ला खान जैसे अनेकों शूरवीरों ने फांसी के फंदे चूमे थे? क्या इसी दिन के लिए देश को आजाद करवाया था
अनिल विज का हाल जानने पहुंचे पूर्व मंत्री मेहता एवं पूर्व सीपीएस सीमा त्रिखा
कि आजाद भारत की सरकारें अपनी ही प्रजा के साथ ज्यादती करें, लोकतंत्र की धज्जियां उड़ाएं और यही नहीं जिन अधिकारियों जिनमें आईएएस, आईपीएस हों, एचसीएस हों, एचपीएस हों यह तमाम अधिकारी पब्लिक सर्वेंट कहलाते हैं लेकिन यह बात मिथ्या है यह बात झूठी है, यह बात आधारहीन है, आज जिन अधिकारियों को हम पब्लिक सर्वेंट समझते हैं उनके ठाक बाट तो अंग्रेजों जैसे हैं राजे महाराजाओं जैसे हैं उनकी मर्जी वो मिले जनता को उनकी मर्जी न मिले।
उनकी मर्जी वो सरकारी फोन उठाएं, उनकी मर्जी वो सरकारी फोन न उठाएं। नाम के पब्लिक सर्वेंट हैं जो लोगों की आंखों में धूल झोंकने के लिए पब्लिक सर्वेंट शब्द दिया। पब्लिक सर्वेंट एसी में बैठा होता है और लोकतंत्र में भगवान का रूप कहलाने वाली जनता घंटो उसकी वेट करती है वह मिले या न मिले उसकी मर्जी और जनता भाड़ में जाए और अधिकारी गाड़ी में बैठ कर वो गया वो गया। कौन कहता है हिन्दुस्तान आजाद हो गया है जो कहता है वह इस पर खुली डिबेट करे आज सबसे ज्यादा गरीब लोग, मीडियम लोग, अपर मीडियम लोग पब्लिक सर्वेंट की डिक्टेटरशीप का शिकार हैं जबकि धनाड्य लोगों की और भूमाफियों की पब्लिक सर्वेंट हाजिरियां भरते हैं।