पश्चिम बंगाल विधानसभा में प्रश्नकाल के दौरान सोमवार को जमकर हंगामा हुआ। सीएम ममता बनर्जी ने भाजपा और केंद्र सरकार पर तमाम आरोप लगाए। आइए जानते हैं ममता बनर्जी ने क्या-क्या कहा?
पश्चिम बंगाल विधानसभा में प्रश्नकाल के दौरान सीएम ममता बनर्जी ने सोमवार को भाजपा पर बड़ा आरोप लगाया। ममता बनर्जी ने कहा कि भाजपा शासित राज्यों में बंगाली बोलने वाले नागरिकों को निशाना बनाया जा रहा है। उनको बांग्लादेशी बताकर गलत कार्रवाई की जा रही है। आलम यह है कि जिन बंगालियों के पास वैध दस्तावेज हैं, उनको भी अवैध बांग्लादेशी प्रवासी कहा जा रहा है। इसके बाद भाजपा विधायकों ने जमकर हंगामा किया।
ममता बनर्जी ने कहा कि भाजपा को शर्म आनी चाहिए कि वे वास्तविक भारतीय नागरिकों को सिर्फ उनकी भाषा के आधार पर बांग्लादेशी बता रहे हैं। बंगाली के साथ-साथ गुजराती, मराठी और हिंदी में बोलने में भी गर्व महसूस होना चाहिए। अगर आप मुझसे पूछें तो मैं इन सभी भाषाओं में बोल सकती हूं। एक ओर आप भारतीयों को उनके द्वारा बोले गए शब्दों के कारण बांग्लादेशी बता रहे हैं और दूसरी ओर आप इन लोगों को, जिनके पास मतदाता पहचान पत्र, पैन और आधार कार्ड हैं, अपने राज्यों में आजीविका कमाने के अधिकार से वंचित कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि उनकी सरकार सामाजिक कल्याण पर सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के निर्देशों के अनुरूप अनुसूचित जाति (26 प्रतिशत), अनुसूचित जनजाति (6 प्रतिशत), पिछड़ी जातियों और मुसलमानों (30 प्रतिशत) के हितों की रक्षा के लिए काम कर रही है। कोई भी हमारे मार्ग को रोक नहीं कर सकता। हमें अपने सपनों को साकार करने से नहीं रोक सकता।
प्रश्नकाल में भाजपा विधायकों ने शिक्षा क्षेत्र में संकट पर स्थगन प्रस्ताव दिया। जिसे विधानसभा अध्यक्ष बिमान बनर्जी ने खारिज कर दिया। इस पर भाजपा विधायकों ने जमकर हंगामा किया। हंगामे के दौरान अध्यक्ष ने अनुशासन भंग करने के आरोप में भाजपा विधायक मनोज उरांव को निलंबित कर दिया। साथ ही भाजपा के मुख्य सचेतक शंकर घोष को चेतावनी दी। इसके बाद सभी 40 भाजपा विधायक प्रतीकात्मक विरोध स्वरूप तुलसी के पौधे लेकर सदन से बाहर चले गए।
इस पर सीएम ममता बनर्जी ने कहा कि भाजपा नेता केवल अपशब्दों का प्रयोग करना चाहते हैं और निराधार आरोप लगाना चाहते हैं। क्या अब वे यह तय करेंगे कि किसी को क्या पहनना चाहिए, क्या खाना चाहिए या कौन से जूते पहनने चाहिए? क्या वे हुक्म चलाएंगे? मैं पूर्व सांसद के तौर पर मुझे आवंटित 1.5 लाख रुपये की पेंशन स्वीकार नहीं करती। क्या वे मुझे नैतिकता और ईमानदारी सिखाएंगे?