क्या कभी आम आदमी राजनीति कर पाएगा?

एक समय था जब राजनीति में व्यक्ति विशेष की कीमत होती थी, व्यक्ति विशेष का आदर होता था, व्यक्ति विशेष की पकड़ होती थी, समाज में रूतबा होता था, लोग सम्मान करते थे बात को मानते थे और एमएलए, मंत्री अपने वोटरों की, अपने इलाके के लोगों की इज्जत करते थे क्योंकि उस वक्त देश व राज्यों की राजनीति में धनबल हावी नहीं था बस इंसानियत थी अपनापन था, ईमानदारी थी, जुबान थी और लोगों को कोई लालच भी नहंी होता था। और सबसे बड़ी बात यह है कि बिना सोशल मीडिया के भी समाज संगठित था, रिश्ते प्रैक्टिकल थे लेकिन अब सब कुछ बदल गया है। अब तो राम नाम की लूट पड़ गई है।

मेरे पिता डॉ. राममूर्ति शर्मा जो इस अखबार के संस्थापक थे उन्होंने बहुत सुंदर कविता वर्तमान हालातों पर लिखी थी जिसकी दो लाइनें लिख रहा हूं ‘‘किस साइज के सूटकेस में कितना माल समा सकता है आज का नेता ही जनता को ये सब ठीक बता सकता है, पहले इसमें होते थे कपड़े अब नोटों की बातें हैं, प्यार मोहब्बत और हमदर्दी बीते कल की बाते हैं’’ अर्थात आज धनबल का समय आ गया है राजनीति में इंसानियत खत्म हो चुकी है आज का नेता वोटर को खरीद रहा है जो गंभीर विषय बन चुका है और समाज ने अपना स्तर गिरा लिया है और पैसे का बोलबाला राजनीति में सिर चढ़कर बोल रहा है। और मीडियम और अपर मीडियम आज राजनीति में आ तो सकता है लेकिन चुनाव लड़ने की सोच आसमान को हाथ लगाने वाली बात हो चुकी है।

आज सरपंच और पार्षद के चुनावों में भी लाखो करोड़ों लगने लग गए हैं ऐसे में मध्यम वर्ग के लोग राजनीति में विधानसभा लोकसभा चुनाव नहीं लड़ सकते और यहां तक राजनीतिक पार्टियों का स्तर भी नीचा होता जा रहा है जो चुनावों के दिनों में ब्रीफकेस देकर किसी भी पार्टी का टिकट ओवर नाइट (आधीरात) को ले सकते हैं उन लोगों के लिए पार्टी में रहना लागू नहीं वह जब मर्जी, जिस मर्जी पार्टी का टिकट धनबल के माध्यम से ले सकते हैं।