संपादकीय: समाज को गुरु नानक देव जी की सोच पर चलना चाहिए
वीरेश शांडिल्य की कलम से :
आज गुरु नानक देव जी का जन्मदिन है और उनके जन्मदिन पर सर्वप्रथम इस संपादकीय के माध्यम से उन्हें कोटि कोटि नमन करता हूँ। जिस दिन गुरु नानक देव जी ने जन्म लिया उस दिन अंधकार मिटा, गुरु नानक देव जी एक अच्छे कवि व कई भाषाओं के ज्ञाता थे। और उनके दिए हुए संदेश पर यदि समाज चले तो एक ऐसे देश का गठन, एक ऐसे समाज का गठन हो सकता है जहां सिर्फ भाईचारा हो, प्यार हो, रामराज हो। गुरु नानक देव जी अच्छे सुफी कवि थे उनके भावुक और कोमल हृदय प्रकृति से एकात्मक होकर जो अभिव्यक्ति की है वह निराली है उनकी भाषा बहता नीर थी जिसमें फारसी, पंजाबी, मुल्तानी, सिंधी, खड़ी बोली व अरबी के शब्द समा गए। गुरु नानक देव जी ने करतार पुर नाम का एक नगर बसाया जो अब पाकिस्तान में है जहां पर करतार पुर साहिब गुरुद्वारा भी है। पहली पातशाही गुरु नानक देव जी के पिता मेहता कालू चंद खत्री और माता का नाम तृप्ता देवी था।
बचपन से ही गुरु नानक देव जी में प्रखर बुद्धि के लक्षण दिखाई देने लगे थे लड़कपन से ही संसारिक विषयों से उदासीन रहा करते थे। गुरु नानक देव जी ने करतारपुर साहिब का गुरुद्वारे से स्वयं लंगर की शुरूआत की और वहीं से संदेश दिया ‘नाम जपो’ अर्थात गुरु नानक देव ने सिख धर्म के सभी अनुयायियों से कहा कि प्रति दिन ईश्वर का नाम जपो, वाहेगुरु का सिमरन करो, ईश्वर के प्रति ध्यान लगाओ। उन्होंने सिखों को ईश्वर की कृपा प्राप्ति और सिमरन के लिए प्रतिदिन नितनेम, बाणी का पाठ करने को कहा। गुरु नानक देव जी ने कहा ‘कीरत करो’ गुरु जी ने अपने अनुयायियों को कहा ग्रस्त जीवन जीने और कीरत करने का उपदेश दिया। कीरत करने अर्थ है ईश्वर के उपहार और आशीर्वाद को ग्रहण करते हुए कठिन मेहनत करके ईमानदारी से कमाओ इसके लिए तुम शारिरिक या फिर मानसिक श्रम कर सकते हो। उन्होंने कहा सभी लोग सदा सत्य बोले और केवल ईश्वर से डरें। शिष्टाचार पूर्वक अपने जीवन का निर्वाह करें और नैतिक मुल्य और अध्यात्मिकता का समावेश हो। गुरु नानक देव जी ने कहा ‘वंड चखो’ गुरु नानक देव जी के अनुसार वंड चखो का अर्थ है कि अर्जित की गई वस्तुओं को दूसरों के साथ सांझा करो और साथ मिलकर उसका उपयोग करो। उन्होंने सिखों से कहा वंड चखों के सिधांत के तहत अपने धन को अपने समुदाय से सांझा करो। समुदाय या सिख संगत सिख समुदाय का हिस्सा है। मैं ऐसे गुरु को शत् शत् प्रणाम करता हूँ और आज उनके प्रगटोत्स्व पर उन्हें नमन करता हूँ और समाज से आह्वन करता हूँ कि गुरु साहिब के बताए मार्ग पर चलें उनकी सोच को जीवन का हिस्सा बनाएं ।