जब बस न चलें तो मीडिया को ब्लैकमेलर कहा जाता है , आज सुप्रीम कोर्ट ने ऐसी धारणा रखने वालों पर की सख्त टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि विचारधारा अलग हैं तो चैनल न देखें, सरकारें बदले की भावना से कारवाई नहीं कर सकती
वीरेश शांडिल्य
रिपब्लिक टीवी के मुख्य सम्पादक अर्नब गोस्वामी को 2018 के आत्महत्या मामले में मुंबई पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया , पुलिस ने जबरन गिरफ्तार कर क़ानून की धज्जियां उड़ा दी थी लेकिन अर्नब गोस्वामी को कोर्ट में पेश किया गया तो कोर्ट को तमाम तथ्यों का अवलोकन करना चाहिए था कि क्या अर्नब गोस्वामी को जेल भेजना उचित हैं l जब मुंबई की अदालत अर्नब गोस्वामी की 14 दिन की पुलिस रिमांड की एप्लीकेशन को ख़ारिज कर सकती है तो अर्नब गोस्वामी को जस्टिस देते हुए बेल भी दी जा सकती है l लेकिन अर्नब गोस्वामी को मुंबई हाईकोर्ट ने भी बेल नहीं दी और आज सुप्रीम कोर्ट ने कहा की इस मामले में न्याय को जिन्दा रखने के लिए हस्तक्षेप जरूरी है और सुप्रीम कोर्ट ने यहाँ तक टिप्पणी कर डाली कि यदि किसी की विचारधारा नहीं मिलती तो वह टीवी ना देखें अख़बार न पढ़े l सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी देश के चौथे स्तम्भ के लिए अहम् है l अक्सर लोग मीडिया को जब बस नहीं चलता ब्लैकमेलर बता देते हैं लेकिन आज सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी नें ऐसे लोगों के मुहं पर चपत मारी हैं l
अक्सर सरकारें,प्रशासन व धनाड्य लोग अपनी गैर कानूनी करतूतों को छुपाने के लिए यह कहकर पत्रकारों को बदनाम कर देते हैं कि यह तो ब्लैकमेलर हैं l सुप्रीम कोर्ट ने अर्नब गोस्वामी के मामले में देरी से हस्तक्षेप किया लेकिन देर आये दुरुस्त आये l आज सुप्रीम कोर्ट के इस फैंसले से न केवल देश की सरकारों,प्रशासन को नसीहत मिलेगी बल्कि देश की न्यायपालिका को भी चिन्तन करने के लिए मजबूर होना होगा l ऐसा नहीं जिसको पुलिस गिरफ्तार कर लाई उसे जेल भेजना ही भेजना हैं l जब तक यह परम्परा बंद नहीं होगी तब तक सरकारें ,पुलिस मनमर्जी करती रहेंगी l पिछले 7 दिन से जो अर्नब गोस्वामी जेल में हैं यातनाये झेल रहे हैं बाहर परिवार प्रताड़ित हो रहा है आखिर इसका क्या मुआवजा सुप्रीम कोर्ट दिलवा सकती है l क्या सुप्रीम कोर्ट वह 5 सम्मान वाले दिन अर्नब गोस्वामी को वापिस करवा सकती है l