संपादकीय: राजनीति पैसे कमाने का धंधा क्यों बन गया (वीरेश शांडिल्य की कलम से खरी-खरी)

राजनीति पैसे कमाने का धंधा क्यों बन गया 

(वीरेश शांडिल्य की कलम से खरी-खरी)

 

संपादकीय:  1947 से पहले देश की आजादी की लड़ाई लड़ी गई जिसमें अनेको अनेक योद्धाओं ने अपना सर्वस्व कुर्बान किया, फांसी के फंदे चूमे। और एक ऐसा भारत बनाने को लेकर कुर्बानियां दी जिस भारत को सोने की चिड़िया कहा जा सके। 1947 को देश आजाद हुआ और पंडित जवाहर लाल नेहरु देश के पहले प्रधानमंत्री बने। और 26 जनवरी 1950 को इस देश को, इस भारत को अपना संविधान मिला, अपनी बात रखने का अधिकार मिला, मौलिक अधिकार मिले और तमाम वो चीजे मिली जो आजाद भारत की जनता के लिए जरूरी थी। और आजादी के बाद अनेको अनेक प्रधानमंत्री आए जिनका उद्देश्य राष्टÑ हित था, देश सेवा था, नर सेवा नारायण सेवा था, अनेको अनेक देश के राजनेता ऐसे हुए जिन्होंने मरते दम तक इमानदारी का चोला नहीं छोड़ा उसमे लाल बहादुर शास्त्री, गुलजारी लाल नंदा, चरण सिंह जैसे सरीखे नेताओं का नाम शामिल है। लाल बहादुर शास्त्री तो फटी हुई धोती में जनता के बीच रहते थे क्योंकि उनके लिए नर सेवा नारायण सेवा था। उनके लिए राजनीति उद्योग नहीं था, उनके लिए राजनीति सेवा थी ना कि राजनीति अमीर बनने का साधन था। लेकिन वर्तमान राजनीति में व्यापार चल रहा है जो विधायक बनता है, सांसद बनता है वह मोटी रकम देकर टिकट लाता है फिर उसको पूरा व डबल करने के लिए हर तरह के हथकंडे अपनाता है। आज जो व्यक्ति राजनीति में एमएलए, एमपी मंत्री बन गया उनकी सात पीढ़ियां तर गई । लेखक डॉ. राममूर्ती ने बहुत बढ़िया लाईने लिखी ‘किस साईज कि सूट केस में कितना माल समा सकता है आज का नेता ही जनता को यह सब ठीक बता सकता है पहले इसमें होते थे कपड़े अब नोटों की बाते हैं, प्यार, मोहब्बत और हमदर्दी बीते कल की बाते हैं।

अब तो राजनीति जन सेवा नहीं नोट कमाने की फैक्ट्री बन गई है और लोगों का भी प्रभाव नेताओं पर कम हो गया है क्योंकि अब तो अधिकतर लोग वोट एग्रीमैंट के आधार पर देते हैं यही कारण है कि अब नेता खुले आम करते हैं लोग आंखों पर पट्टी बांधे रखते हैं। जो लोग इमानदार हैं वह यह सोच कर चुप हो जाते हैं कि तुम्हे क्या लेना। आखिर यह सिलसिला कब खत्म होगा यह इसके लिए भी एक ओर आजादी की लड़ाई लड़नी होगी आज लोग नेताओं के खास आदमियों को ढूंढते हैं मेरा लड़का सरकारी नौकरी लगवा दो, मेरी लड़की डीसी रेट पर लगवा दो, मेरे रिश्तेदार की ट्रांसफर करवा दो, मेरे भाई-बहन को मालदार पोस्ट पर लगवा दो जो सेवा पानी होगी वो कर देंगे यह देश में एक रिवाज पैदा हो गया। अब आपसी भाईचारे की सामाजिक भाईचारे की, वोट की ताकत की कोई कीमत नहीं रही, कोई भी अमीर आदमी, कोई भी भामा सेठ, कोई भी धनाढय देश के किसी भी हिस्से से टिकट लाता है पैसे के दम पर जीत जाता है, वोटर जाए भाड़ में 5 साल ठोक कर कहता है मेरे ऊपर क्या एहसान किया। वोट दी माल लिया तो इस तरह की परंपराओं को, इस तरह के मक्कड़ जालों को तोड़ना होगा और लाल बहादुर शास्त्री जैसे अन्ना जैसे लोगों को राजनीति में आगे आना होगा नहीं तो कोरोना महामारी तो खत्म हो जाएगी लेकिन जिस तरह की राजनीति देश में चल रही है यह कोरोना से भी खतरनाक है। इसकी वैक्सिन समाज का इमानदार व संगठित होकर आगे आना है उसके बाद अपने आप देश में लाल बहादुर शास्त्री जैसे नेता आगे आ जाएंगे। आज आपके घर के बाहर गंद पड़ा है, आपका रोड़ टूटा पड़ा है अस्पताल सुविधाओं के नाम पर सफेद हाथी है, गंदा पानी आ रहा है, बरसातों में घरों में पानी घूस रहा है, सिवरेज का पानी घरों में घूस रहा है लेकिन आपनी बातें कोई सुनने को तैयार नहीं क्योंकि कमी समाज में है।

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